الثلاثاء، 10 فبراير 2009

वेलेंटाइन्स-डे की वास्तविकता और उसके विषय में इस्लामी दृष्टि-कोण


वेलेंटाइन्स-डे की वास्तविकता और उसके विषय में इस्लामी दृष्टि-कोणः


हर प्रकार की प्रशंसा सर्व जगत के पालनहार अल्लाह तआला के लिए योग्य है, तथा अल्लाह की कृपा एंव शांती अवतरित हो अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद पर, तथा आप के साथियों, आप की संतान और आप के मानने वालों पर।

हर वर्ष 14, फरवरी को पूरे विश्व में बड़ी धूम-धाम से वेलेंटाइन्स डे मनाया जाता है, किन्तु इस पर्व की वास्तविकता क्या है? और इस्लामिक दृष्टि कोण से एक मुसलमान के लिए इस में भाग लेना या इसे मनाना कैसा है? इस लेख में इन्हीं तत्वों को स्पष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है ताकि एक मुसलमान अपने धर्म के विषय में सावधानी रहे और ऐसे कार्यों में न पड़े जो उसके धर्म के लिए घातक सिद्ध हों।

इसका ऐतिहासिक पृष्ठ-भूमि यह है कि संत वेलेंटाइन तीसरी शताब्दी ईसवी के अन्त में रूमानी राजा कलाडीस के शासन-अधीन रहता था। किसी अवज्ञा के कारण राजा ने सन्त को जेल में डाल दिया। जेल में जेल के एक चौकीदार की बेटी से उसकी जान पहचान हो गई और वह उस पर मोहित हो गया। यहाँ तक कि उस लड़की ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया और उस के साथ उस के 46 रिश्तेदार भी ईसाई हो गये। वह लड़की एक लाल गुलाब का फूल लेकर उस से मिलने के लिए आती थी। जब राजा ने उस का यह मामला देखा तो उसे फाँसी देने का आदेश जारी कर दिया। सन्त को जब यह पता चला तो उस ने सोचा कि उसके जीवन का अन्तिम छड़ अपनी प्रेमिका के साथ बीते, चुनांचे उसने उस के पास एक कार्ड भेजा जिस पर लिखा हुआ था : ``शुद्ध-हृदय वेलेन्टाइन की ओर से ´´। फिर उसे 14 फरवरी 270 ई. को फाँसी दे दी गई। इस के बाद यूरप के बहुत सारे गाँवों में हर वर्ष इस दिन लड़कों की ओर से लड़कियों को कार्ड भेजने की प्रथा चल पड़ी। एक समय-काल के पश्चात पादरियों ने उसे इस प्रकार से बदल दिया: ``सन्त वेलेन्टाइन की ओर से ´´। उन्हों ने ऐसा इस लिए किया ताकि सन्त वेलेन्टाइन और उस की प्रेमिका की यादगार को सदा के लिए जीवित कर दें।

आज पूरी दुनिया में इस दिन को युवा लड़के और लड़कियाँ बड़े हर्ष व उल्लास से मनाते हैं, इस अवसर पर वेलेन्टाइन कार्ड भेजे जाते हैं, विशेष रूप से लाल गुलाब के फूल पेश किये जाते हैं, वेलेन्टाइन-डे की बधाई दी जाती है, अनेक प्रकार के उपहार, तोह्फे और यादगार निशानियाँ भेंट की जाती हैं। इस प्रकार यह त्योहार युवा लड़कों और लड़कियों के बीच बे-हयाई, अश्लीलता और दुराचार फैलाने और उन्हें प्रोत्साहन देने का माध्यम बन गया है।

दुर्भाग्य से मुस्लिम समाज भी इस से सुरक्षित नहीं रहा। जबकि दरअसल यह रूमानियों का एक मूर्ति-पूजन-श्रद्धा है जिस में अल्लाह को छोड़ कर एक मूर्ति की पूजा होती है, जिसे उनके निकट प्रेम का देवता समझा जाता है। जिसे बाद के समय में ईसाईयों ने अपने धर्म के अन्दर सन्त वेलेन्टाइन पर चस्पां कर के एक धार्मिक पर्व के रूप में मनाना आरम्भ कर दिया, अब तो उसे पाप ने भी ईसाई पर्व के रूप में प्रमाणित कर दिया है।

अत: किसी मुसलमान के लिए इस को मनाना, या किसी को इस की बधाई देना, या वेलेन्टाइन कार्ड भेजना, या उपहार आदि भेँट करना, या इस में किसी भी प्रकार का सहयोग करना अवैध और पाप है। क्योंकि इस्लाम से इसका कोई भी संबंध नहीं है, बल्कि यह ईसाईयों के त्योहारों और रीतियों में से है और इस्लाम ने अपने मानने वालों को अन्य क़ौमों की रीतियों को अपनाने और धर्म के विषय में उनका अनुकरण करने से सख्ती से रोका है। अल्लाह के शत्रुओं के अनुरूप बनने से सावधान करते हुए पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

`` जिस ने किसी क़ौम की मुशाबहत (छवि) अपनाई वह उन्हीं में से है।´´ (अबू दाऊद)

हाफिज़ इब्ने कसीर रहिमहुल्लाह फरमाते हैं:

`` इस हदीस से पता चला कि काफिरों के कथनों, कर्मों, वस्त्रों, त्योहारों, उपासनाओं और इन के अतिरिक्त अन्य वह बातें जिन्हें हमारी शरीअत ने हमारे लिए वैध घोषित नहीं किया है, उनमें उनकी मुशाबहत (एक-रूपता, समानता) अपनाने पर धमकी दी गई है और सख्ती के साथ उस से रोका गया है...´´ (तफ्सीर इब्ने कसीर 1/328)

तथा अमीरूल-मोमिनीन उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु का कथन है:

``अजमियों (ग़ैर-अरब)की भाषा न सीखो, और मुश्रिकों के त्योहार के दिन उनके गिर्जा-घरों में उनके पास न जाओ, क्योंकि उन पर (अल्लाह का) क्रोध उतरता है।´´ (सुनन बैहक़ी 9/392)

अल्लामा इब्ने तैमिय्या फरमाते हैं:

उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने उनकी भाषा सीखने और उनके त्योहार के दिन उनके गिर्जा-घर में मात्र उनके पास जाने से रोका है, तो फिर उनके कुछ कामों को करने का क्या हाल होगा? या उन के धर्म के अनुसार किसी काम के करने का क्या हुक्म होगा? क्या काम के अन्दर उनकी समानता -मुवाफक़त- करना भाषा के अन्दर समानता करने से अधिक गंभीर नहीं है? या उनके त्योहार के कुछ कामों को करना, उनके त्योहार के दिन मात्र उनके पास जाने से अधिक भयंकर नहीं है? और जब उन के त्योहार के दिन उनके कार्य के कारण उन पर (अल्लाह का) क्रोध उतरता है, तो जो आदमी उनके जैसा काम करेगा क्या वह उस प्रकोप से पीड़ित नहीं होगा?

तथा उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाते हैं :

``अल्लाह के शत्रुओं से उनके त्योहार में दूर रहो।´´ (सुनन बैहक़ी 9/392)

अल्लामा इब्ने तैमिय्या फरमाते हैं:

``क्या उमर रज़ियल्ला अन्हु का फरमान अल्लाह के दुश्मनों से उनके त्योहार में मुलाक़ात करने और उनके साथ मिल कर बैठने से नहीं रोकता? तो फिर उस आदमी का क्या हाल होगा जो उनके त्योहार को मनाता है? (इक्तिज़ाउस्सिरातिल-मुस्तक़ीम 1/458)

अल्लामा इब्ने क़ैयिम्म रहिमहुल्लाह फरमाते हैं :

`` कुफ्र के विशिष्ठ शआईर (रीतियाँ और तौर तरीक़े) की बधाई देना सर्व सहमति के साथ हराम है, उदाहरण स्वरूप उन्हें उनके त्योहारों या उनके व्रतों की बधाई देना, चुनांचे इस प्रकार कहना कि: आप का त्योहार शुभ हो, या इस त्योहार पर आप के लिए शुभकामनाएं आदि, तो ऐसा कहने वाला आदमी यदि कुफ्र (अधर्मी होने) से सुरक्षित रह गया तब भी वह हराम (निषिध) चीज़ों में से तो है ही, और वह ऐसे ही है जैसे कि वह उसे सलीब को सज्दा करने की बधाई दे, बल्कि यह अल्लाह के निकट शराब पीने, क़त्ल करने, व्यभिचार करने आदि की बधाई देने से अधिक बड़ा पाप और अल्लाह के क्रोध का कारण है। बहुत से लोग जिनके निकट धर्म का कोई महत्व नहीं है वह ऐसा कर बैठते हैं और उन्हें पता नहीं होता कि उन्हों ने कितना घिनावना और घृणित काम किया है, जिस ने किसी आदमी को किसी अवज्ञा, या बिदअत, या कुफ्र की बधाई दी वह अल्लाह तआला के कठोर क्रोध और प्रकोप से पीणित हुआ।´´ (अहकाम अहलिज्ज़िम्मह 1/205-206)

काफिरों को उनके धार्मिक त्योहारों की बधाई देना हराम और इतना गंभीर इस लिए है क्योंकि ऐसा करना कुफ्र के शआईर की स्वीकृति और उस पर प्रसन्नता का प्रतीक है।

तथा वेलेंटाइन्स-डे मनाने से दुराचार, अश्लीलता और बेहयाई फैलती है, जो अल्लाह के निकट एक बड़ा पाप है। अल्लाह तआला का फरमान है:

``जो लोग मुसलमानों में बेहयाई (अश्लीलता) फैलाने के इच्छुक रहते हैं उनके लिए दुनिया और आखिरत (लोक और परलोक) में कष्टदायक अज़ाब है।´´ (सूरतुन्नूर:19)

इस आयत में हर उस व्यक्ति के लिए गंभीर वईद और भयानक धमकी है जो मुस्लिम समाज में अश्लीलता के फैलाने का इच्छुक है, तो फिर भला बतलाईये कि उस आदमी का क्या हाल होगा जो स्वयं अश्लीलता फैलाता, या उसको प्रोत्साहन देता, या उसका निरीक्षक और अभिभावक है?

वर्तमान समय के धर्म-शास्त्रियों और ज्ञानियों ने इसके हराम और निषिध होने का फत्वा दिया है और मुसलमानों को इस से दूर रहने और इस से बचाव करने का सुझाव दिया है। इन में मुख्य रूप से सऊदी अरब की इफ्ता एंव वैज्ञानिक अनुसन्धान की स्थायी समिति है। (देखिये: 23/11/1420 हिज्री का फत्वा नंबर: 21203) इन्हीं में से सुप्रसिद्ध बुद्धिजीवी शैख मुहम्मद बिन सालेह अल-उसैमीन रहिमहुल्लाह हैं, जिनका इस बारे में 5/11/1420 हिज्री को अपने हाथों से लिखा हुवा फत्वा मौजूद है। (देखिये: इब्ने उसैमीन का फतावा संग्रह 16/199-200)

अल्लाह तआला से प्रार्थना है कि समस्त मुसलमानों को उचित रूप से इस्लाम धर्म को समझने की तौफीक़ प्रदान करे और उन्हें हर प्रकार की बिद्अतों और धर्म के विषय में अन्य क़ौमों का अनुकरण करने से सुरक्षित रखे। आमीन!