الأربعاء، 21 أبريل 2010

जादू के उपचार के तरीक़े



जादू के उपचार के तरीक़े

जिस आदमी को जादू कर दिया गया हो, या जादू-मंत्र के द्वारा उसके अंदर किसी के प्रति घृणा या किसी के प्रति प्रेम पैदा कर दिया गया हो, उसका उपचार क्या है ? मोमिन के लिए कैसे सम्भव है कि वह उस से छुटकारा पा जाये और जादू उसे नुक़सान न पहुँचाये, और क्या इस चीज़ के लिए क़ुर्आन और हदीस से कोई ज़िक्र या दुआयें हैं ?

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।

जादू के उपचार के कई प्रकार हैं :

सर्व प्रथम : यह देखा जायेगा कि जादूगर ने क्या किया है, अगर पता चल जाये कि उदाहरण के तौर पर उस ने किसी जगह कुछ बाल रखा है, या उसे कंघियों में रखा है, या इसके अलावा किसी अन्य चीज़ में रखा है, अगर पता चल जाये कि उस ने फलाँ स्थान पर जादू रखा है तो उस चीज़ को हटा दिया जायेगा, उसे जला दिया जायेगा और नष्ट कर दिया जायेगा, ऐसा करने से जादू का प्रभाव समाप्त हो जायेगा और जादूगर का जो मक्सद था वह विफल हो जायेगा।

दूसरा : अगर जादूगर का पता चल जाये तो जो कुछ जादू उसने किया है उसे नष्ट करने पर बाध्य किया जायेगा, उस से कहा जायेगा : या तो तू ने जो जादू किया है उसे नष्ट कर दे या फिर तेरी गर्दन उड़ा दी जायेगी, फिर जब वह उस जादू की हुई चीज़ को निरस्त कर दे तो मुसलमानों का शासक उसे क़त्ल कर देगा, क्योंकि शुद्ध कथन के अनुसार जादूगर को बिना तौबा करवाये ही क़त्ल कर दिया जायेगा, जैसाकि उमर रज़ियल्लाहु उन्हु ने ऐसा ही किया था, तथा रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत किया गया है कि आप ने फरमाया : "जादूगर की सज़ा (दण्ड) तलवार से उसकी गर्दन मारना है", तथा जब उम्मुलमोमिनीन हफ्सा रज़ियल्लाहु अन्हा को पता चला कि उनकी एक लौंडी जादू का काम करती है तो उसे क़त्ल करवा दिया।

तीसरा : क़ुर्आन पढ़ना ; क्योंकि क़ुरआन पढ़ने का जादू के निवारण में बड़ा प्रभाव है : उसका तरीक़ा यह है कि जादू से पीड़ित व्यक्ति पर या किसी बर्तन में आयतुल कुर्सी, तथा सूरतुल आराफ, सूरत यूनुस और सूरत ताहा में जादू से संबंधित आयतें, और उनके साथ ही सूरतुल काफिरून, सूरतुल इख्लास और मुऔवज़तैन (सूरतुल फलक़ और सूरतुन्नास) पढ़ी जायें, और उसके लिए शिफा (रोगनिवारण) और अच्छे स्वास्थ्य की दुआ की जाये, विशेषकर वह दुआ जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित है और वह यह है :

"अल्लाहुम्मा रब्बन्नास, अज़्हिबिल्बास वश्फ़ि अन्तश्शाफ़ी, ला शिफ़ाआ इल्ला शिफ़ाउक्, शिफ़ाअन् ला युग़ादिरो सक़मा"

( अल्लाह, लोगों के रब! संकट को दूर कर दे, और स्वास्थ्य प्रदान कर, तू ही स्वास्थ्य प्रदान करने वाला है, तेरे प्रदान किये हुये स्वास्थ्य (रोग निवारण) के अलावा कोई और स्वास्थ्य (रोग निवारण) नहीं है, ऐसी स्वास्थ्य प्रदान कर जो किसी बीमारी को न छोड़े।)

इसी में से वह दुआ भी है जिसके द्वारा जिब्रील अलैहिस्सलाम ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दम किया था और वह दुआ यह है :

"बिस्मिल्लाहि अर्क़ीक, मिन कुल्ले शैइन यू'ज़ीक, व मिन शर्रे कुल्ले नफ़्सिन् औ ऐ़निन् ह़ासिदिन्, अल्लाहु यश्फ़ीक, बिस्मिल्लाहि अर्क़ीक।"

(मैं अल्लाह के नाम से तुझ पर दम करता हूँ हर उस चीज़ से जो तुझे कष्ट पहुँचाती है, और हर नफ्स की बुराई से या हसद करने वाली आँख से, अल्लाह तुझे शिफा दे, मैं अल्लाह के नाम से तुझ पर दम करता हूँ।)

और इस दम (दुआ) को तीन बार दोहराये। इसी तरह "क़ुल हुवल्लाहु अहद्" और मुऔवज़तैन (सूरतुल फलक़ और सूरतुन्नास) को भी तीन बार दोहराये।

तथा जादू के उपचार में से ही यह भी है कि हम ने जो दुआयें उल्लिखित की हैं उन्हें पानी में पढ़े और जादू से पीड़ित व्यक्ति उस में से कुछ पानी पिये और शेष पानी से आवश्यकता के अनुसार एक या अधिक बार स्नान करे, अल्लाह के हुक्म से उसका निवारण हो जायेगा। उलमा रहिमहुमुल्लाह ने अपनी किताबों में इसका उल्लेख किया है, जैसाकि शैख अब्दुर्रहमान बिन हसन रहिमहुल्लाह ने अपनी किताब (फत्हुल मजीद शरह किताबुत्तौहीद) के अध्याय (मा जा-आ फिन्नुश्रा) में किया है, और इनके अलावा अन्य विद्वानों ने भी इसका उल्लेख किया है।

चौथा : बैरी के सात हरे पत्ते लेकर उसे कूट लें और पानी में मिला लें और उस में पीछे गुज़र चुकी आयतें, सूरतें और दुआयें पढ़ें, फिर उस में से कुछ पानी पी लें और बाक़ी पानी से स्नान करें। इसी प्रकार यह उस आदमी के उपचार में भी उपयोगी है जिसे उसकी पत्नी से (संभोग करने से) रोक दिया गया हो, चुनाँचि बैरी के सात हरे पत्ते पानी में डाल कर उसमें पिछली आयतें, सूरतें और दुआयें पढ़ी जायें, फिर उस से पिया जाये और स्नान किया जाये, अल्लाह के हुक्म से यह लाभदायक सिद्ध होगा।

जादू से पीड़ित और अपनी पत्नी से संभोग करने से रोक दिये गये आदमी के उपचार के लिए बैरी के पत्ते और पानी में पढ़ी जानी वाली आयतें निम्नलिखित हैं :

1- सूरतुल-फातिहा पढ़ना।

2- सूरतुल बक़रा से आयतुल कुर्सी पढ़ना, और वह अल्लाह तआला का यह फरमान है :

اللهُ لا إِلَهَ إِلا هُوَ الْحَيُّ الْقَيُّومُ لا تَأْخُذُهُ سِنَةٌ وَلا نَوْمٌ لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الأَرْضِ مَنْ ذَا الَّذِي يَشْفَعُ عِنْدَهُ إِلا بِإِذْنِهِ يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ وَلا يُحِيطُونَ بِشَيْءٍ مِنْ عِلْمِهِ إِلا بِمَا شَاءَ وَسِعَ كُرْسِيُّهُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضَ وَلا يَئُودُهُ حِفْظُهُمَا وَهُوَ الْعَلِيُّ الْعَظِيمُ

"अल्लाह (तआला) ही सच्चा पूज्य है, जिसके अलावा कोई पूज्य नहीं, जो ज़िन्दा है और सब का थामने वाला है, जिसे न ऊँघ आये न नींद, उस की मिल्कियत में धरती और आकाश की सभी चीज़ें हैं, कौन है जो उसके हुक्म के बिना उसके सामने सिफारिश कर सके, वह जानता है जो उनके सामने है और जो उनके पीछे है और वह उसके इल्म में से किसी चीज़ का घेरा नहीं कर सकते, लेकिन वह जितना चाहे। उसकी कुर्सी के विस्तार ने धरती और आकाशों को घेर रखा है, वह अल्लाह उनकी हिफाज़त से न थकता है और न ऊबता है, वह तो बहुत महान और बहुत बड़ा है।" (सूरतुल बक़रा : 255)

3- सूरतुल आराफ की यह आयतें पढ़ना :

قَالَ إِنْ كُنْتَ جِئْتَ بِآيَةٍ فَأْتِ بِهَا إِنْ كُنْتَ مِنَ الصَّادِقِينَ (106) فَأَلْقَى عَصَاهُ فَإِذَا هِيَ ثُعْبَانٌ مُبِينٌ (107) وَنَزَعَ يَدَهُ فَإِذَا هِيَ بَيْضَاءُ لِلنَّاظِرِينَ (108) قَالَ الْمَلأُ مِنْ قَوْمِ فِرْعَوْنَ إِنَّ هَذَا لَسَاحِرٌ عَلِيمٌ (109) يُرِيدُ أَنْ يُخْرِجَكُمْ مِنْ أَرْضِكُمْ فَمَاذَا تَأْمُرُونَ (110) قَالُوا أَرْجِهْ وَأَخَاهُ وَأَرْسِلْ فِي الْمَدَائِنِ حَاشِرِينَ (111) يَأْتُوكَ بِكُلِّ سَاحِرٍ عَلِيمٍ (112) وَجَاءَ السَّحَرَةُ فِرْعَوْنَ قَالُوا إِنَّ لَنَا لأَجْرًا إِنْ كُنَّا نَحْنُ الْغَالِبِينَ (113) قَالَ نَعَمْ وَإِنَّكُمْ لَمِنَ الْمُقَرَّبِينَ (114) قَالُوا يَا مُوسَى إِمَّا أَنْ تُلْقِيَ وَإِمَّا أَنْ نَكُونَ نَحْنُ الْمُلْقِينَ (115) قَالَ أَلْقُوا فَلَمَّا أَلْقَوْا سَحَرُوا أَعْيُنَ النَّاسِ وَاسْتَرْهَبُوهُمْ وَجَاءُوا بِسِحْرٍ عَظِيمٍ (116) وَأَوْحَيْنَا إِلَى مُوسَى أَنْ أَلْقِ عَصَاكَ فَإِذَا هِيَ تَلْقَفُ مَا يَأْفِكُونَ (117) فَوَقَعَ الْحَقُّ وَبَطَلَ مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ (118) فَغُلِبُوا هُنَالِكَ وَانْقَلَبُوا صَاغِرِينَ (119) وَأُلْقِيَ السَّحَرَةُ سَاجِدِينَ (120) قَالُوا آَمَنَّا بِرَبِّ الْعَالَمِينَ (121) رَبِّ مُوسَى وَهَارُونَ (122)

"उस (फिरऔन) ने कहा, अगर आप कोई मोजिज़ा (चमत्कार) ले कर आये हैं तो उसे पेश कीजिये, यदि आप सच्चे हैं। फिर आप (मूसा अलैहिस्सलाम) ने अपनी छड़ी डाल दी तो अचानक वह एक साफ अजगर साँप बन गया। और अपना हाथ बाहर निकाला तो वह अचानक सभी देखने वालों के समाने बहुत ही चमकता हुआ हो गया। फिरऔन की क़ौम के सरदारों ने कहा कि यह बड़ा माहिर जादूगर है। वह तुम्हें तुम्हारे देश से निकालना चाहता है फिर तुम लोग क्या विचार देते हो ? उन्हों ने कहा कि आप उसे और उस के भाई को समय दीजिये और नगरों में इकट्ठा करने वालों को भेज दीजिये कि वे सभी माहिर जादूगरों को आप के समाने लाकर हाज़िर करें। और जादूगर फिरऔन के पास आये और कहा कि अगर हम सफल हो गये तो क्या हमारे लिए कोई बदला है ? उस ने कहा, हाँ, और तुम सब क़रीबी लोगों में हो जाओ गे। उन (जादूगरों) ने कहा कि ऐ मूसा! चाहे आप डालिये या हम ही डालें। (मूसा ने) कहा कि तुम ही डालो तो जब उन्हों ने डाला तो लोगों की नज़रबन्दी कर दी और उनको डरा दिया, और एक तरह का बड़ा जादू दिखाया। और हम ने मूसा को हुक्म दिया कि अपनी छड़ी डाल दो, फिर वह अचानक उनके स्वांग (ढोंग) को निगलने लगी। अत: सच स्पष्ट हो गया और उन्हों ने जो कुछ बनाया था सब जाता रहा। अत: वो लोग इस मौक़ा पर हार गये और बहुत अपमानित होकर लौटे। और जादूगर सज्दे में गिर गये। कहने लगे कि हम ईमान लाये सारी दुनिया के रब पर। जो मूसा और हारून का भी रब है।" (सूरतुल आराफ: 106-122)

4- सूरत यूनुस की निम्नलिखित आयतें पढ़ना :

وَقَالَ فِرْعَوْنُ ائْتُونِي بِكُلِّ سَاحِرٍ عَلِيمٍ (79) فَلَمَّا جَاءَ السَّحَرَةُ قَالَ لَهُمْ مُوسَى أَلْقُوا مَا أَنْتُمْ مُلْقُونَ (80) فَلَمَّا أَلْقَوْا قَالَ مُوسَى مَا جِئْتُمْ بِهِ السِّحْرُ إِنَّ اللهَ سَيُبْطِلُهُ إِنَّ اللهَ لا يُصْلِحُ عَمَلَ الْمُفْسِدِينَ (81) وَيُحِقُّ اللهُ الْحَقَّ بِكَلِمَاتِهِ وَلَوْ كَرِهَ الْمُجْرِمُونَ (82)

"और फिरऔन ने कहा कि मेरे पास सभी माहिर जादूगरों को लाओ। फिर जब जादूगर आये तो मूसा ने उन से कहा कि डालो जो कुछ तुम डालने वाले हो। तो जब उन्हों ने डाला तो मूसा ने कहा कि यह जो कुछ तुम लाये हो जादू है, तय बात है कि अल्लाह इस को अभी बरबाद किये देता है, अल्लाह ऐसे फसादियों का काम बनने नहीं देता। और अल्लाह तआला सच्चे सुबूत को अपने क़ौल से स्पष्ट कर देता है, चाहे मुजरिमों को कितना ही बुरा लेगे।" (सूरत यूनुस: 79-82)

5- सूरत ताहा की ये आयतें पढ़ना :

قَالُوا يَا مُوسَى إِمَّا أَنْ تُلْقِيَ وَإِمَّا أَنْ نَكُونَ أَوَّلَ مَنْ أَلْقَى (65) قَالَ بَلْ أَلْقُوا فَإِذَا حِبَالُهُمْ وَعِصِيُّهُمْ يُخَيَّلُ إِلَيْهِ مِنْ سِحْرِهِمْ أَنَّهَا تَسْعَى (66) فَأَوْجَسَ فِي نَفْسِهِ خِيفَةً مُوسَى (67) قُلْنَا لا تَخَفْ إِنَّكَ أَنْتَ الأَعْلَى (68) وَأَلْقِ مَا فِي يَمِينِكَ تَلْقَفْ مَا صَنَعُوا إِنَّمَا صَنَعُوا كَيْدُ سَاحِرٍ وَلا يُفْلِحُ السَّاحِرُ حَيْثُ أَتَى (69)

"वे कहने लेगे कि हे मूसा! या तो तू पहले डाल या हम पहले डालने वाले बन जायें। जवाब दिया : नहीं, तुम ही पहले डालो। अब तो मूसा को यह ख्याल होने लगा कि उन की रस्सियाँ और लकड़ियाँ उन के जादू की ताक़त से दौड़ भाग रही हैं। इस से मूसा अपने मन ही मन में डरने लगे। हम ने कहा कि कुछ डर न कर, बेशक तू ही गालिब और ऊँचा होगा। और तेरे दाहिने हाथ में जो है उसे डाल दे कि उनकी सारी कारीगरी को यह निगल जाये, उन्हों ने जो कुछ बनाया है यह केवल जादूगरों के करतब हैं, और जादूगर कहीं से भी आये कामयाब नहीं होता।" (सूरत ताहा: 65-69)

6- सूरतुल काफिरून पढ़ना।

7- तीन बार सूरतुल इख्लास और मुऔवज़तैन यानी सूरतुल फलक़ और सूरतुन्नास पढ़ना।

8- कुछ शरई दुआयें पढ़ना, उदाहरण के तौर पर :

"अल्लाहुम्मा रब्बन्नास, अज़्हिबिल्बास वश्फ़ि अन्तश्शाफ़ी, ला शिफ़ाआ इल्ला शिफ़ाउक्, शिफ़ाअन् ला युग़ादिरो सक़मा"

( अल्लाह, लोगों के रब! कष्ट को दूर कर दे, और स्वास्थ्य प्रदान कर, तू ही स्वास्थ्य प्रदान करने वाला है, तेरे रोग निवारण के अलावा कोई रोग निवारण नहीं, ऐसी स्वास्थ्य (रोग निवारण) प्रदान कर कि कोई बीमारी बाक़ी न रहे।)

इसे तीन बार पढ़ें तो अच्छा है। और अगर इसके साथ ही निम्नलिखित दुआ भी तीन बार पढ़ें तो बेहतर है :

"बिस्मिल्लाहि अर्क़ीक, मिन कुल्ले शैइन यू'ज़ीक, व मिन शर्रे कुल्ले नफ़्सिन् औ ऐ़निन् ह़ासिदिन्, अल्लाहु यश्फ़ीक, बिस्मिल्लाहि अर्क़ीक।"

(मैं अल्लाह के नाम से तुझ पर दम करता हूँ हर उस चीज़ से जो तुझे कष्ट पहुँचाती है, और हर नफ्स की बुराई से या हसद करने वाली आँख से, अल्लाह तुझे शिफा दे, मैं अल्लाह के नाम से तुझ पर दम करता हूँ।)

और अगर उपर्युक्त आयतें और दुआयें सीधे जादू से प्रभावित व्यक्ति पर पढ़ें और उसके सिर या उसके सीने पर फूँक मारें (दम करें), तो यह भी अल्लाह के हुक्म से शिफा (रोग निवारण) के कारणों में से है, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है।

الاثنين، 5 أبريل 2010

अत्तआउनिय्या बीमा कंपनी के शेयर खरीदने का हुक्म

अत्तआउनिय्या बीमा कंपनी के शेयर खरीदने का हुक्म

प्रश्नः

अत्तआउनिय्या नामी बीमा कंपनी के शेयरों को खरीदने का क्या हुक्म है जिस ने सऊदी शेयर बाज़ार में अपने शेयरों की पेशकश की है ?

उत्तरः

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है, तथा अल्लाह के पैगंबर पर दया और शान्ति अवतरित हो, अल्लाह की प्रशंसा और गुणगान के बाद :

इस के शरई हुक्म का हम निम्नलिखित बिन्दुओं में खुलासा कर रहे हैं :

1- बीमा का शरई हुक्म :

समकालीन विद्वानों की बहुमत इस बात की ओर गई है कि वाणिज्यिक बीमा हराम और सहकारी बीमा जाइज़ है, और यही दृष्टि कोण सामूहिक फत्वा जारी करने की अधिकांश कौंसिलों के द्वारा अपनाया गया है, जैसे कि सऊदी अरब के वरिष्ठ विद्वानों की परिषद, तथा फत्वा जारी करने की स्थायी समिति, मक्का मुकर्रमा में मुस्लिम विश्व लीग के अधीन इस्लामी फिक़्ह अकादमी, जिद्दा में इस्लामी सम्मेलन के संगठन के अधीन अन्तर्राष्ट्रीय इस्लामी फिक़्ह परिषद, और इन के अलावा अन्य ; क्योंकि वाणिज्यिक बीमा धोखा, अस्पष्टता, जुआ और अवैध रूप से लोगों का धन खाने पर आधारित है, सहकारी बीमा के विपरीत जो कि पारस्परिक सहयोग और एकजुटता (सामाजिक समता वाद) पर आधारित है। आज बीमा उद्योग की वास्तविकता को निष्पक्षता और इंसाफ के दृष्टि से देखने वाले को अच्छी तरह पता चल जायेगा कि इस कथन (दृष्टि कोण) में कितनी मध्यस्थता और सन्तुलन है, और यह बिना किसी छति या गबन के लोगों की आवश्यकतायें पूरी करने और उन के हितों को प्राप्त करने में इस्लामी धर्म शास्त्र के उद्देश्यों के कितना अनुरूप है। और बीमा के आँकड़े इस बात के सब से स्पष्ट साक्षी और गवाह हैं, वाणिज्यिक बीमा व्यवस्था में बीमा कंपनियों के पास भारी मात्रा में धन जमा हो जाते हैं जबकि इस के बदले में वे जो मुआवज़े देती हैं वे प्राप्त किये गये मुनाफे की तुलना में बहुत ही कम होते हैं, जिस के परिणाम स्वरूप अमीर अल्पसंख्यक बीमा के लाभ और उस की सेवाओं के एक एकाधिकार बन जाते हैं, जबकि गरीब बहुमत इन से वंचित रहती है क्योंकि वे बीमा की क़िस्तों को उठाने में असमर्थ होते हैं। इन कंपनियों ने लोगों को इस तरह भ्रम में डाल रखा है कि खतरों और जोखिम को तोड़ने के लिए इस के अलावा कोई रास्ता नहीं है, लेकिन सहकारी बीमा के अनुभवों ने इसे गलत साबित कर दिया है जो कि कई विकसित देशों में लागू किये गये तो बीमा के लक्ष्यों को प्राप्त करने में वाणिज्यिक बीमा कपंनियों से अधिक सफल साबित हुए।

2- वाणिज्यिक बीमा और सहकारी बीमा के बीच अन्तर :

वाणिज्यिक बीमा में, बीमा का प्रशासन और प्रबंध बीमा प्राप्तियों से अलग एक स्वतन्त्र कंपनी करती है, और यह कंपनी आवश्यकता पड़ने की स्थिति में बीमा राशि के भुगतान की प्रतिबद्धता के बदले में बीमा की सभी क़िस्तों का हक़दार होती है, और बीमा की क़िस्तों की बढ़ती से उस के पास जो कुछ बच जाता है उसे बीमा कराने वालों पर वापस नहीं लौटाती है, इसलिए कि यह उसे ससहमत मुआवज़े के भुगतान की प्रतिबद्धता के मुक़ाबिले में एक बदला समझती है, और अगर प्राप्त क़िस्तें सभी मुआवज़ों के भुगतान के लिए पर्याप्त नहीं होती हैं तो उस के लिए बीमा कराने वालों से बीमा की अतिरिक्त क़िस्तों की मांग करने का अधिकार नहीं होता है। और यही अस्पष्टता और धोखे का व्यापार करना है जो इस्लाम में निषिद्ध है, तथा अवैध ढंग से लोगों के धन को खाना है।

जबकि सहकारी बीमा में एक जैसे खतरे से पीड़ित कुछ लोग जमा होते हैं, और उन में से हर एक व्यक्ति एक निर्धारित योगदान (राशि का भुगतान) करता है, और ये सभी योगदान (राशियाँ) छति ग्रस्त होने वाले व्यक्ति को मुआवज़ा देने के लिए विशिष्ट कर दी जाती हैं, यदि योगदान की राशि मुआवज़ा के भुगतान से बढ़ जाती है तो सदस्यों को उसे वापस लौटाने का अधिकार होता है, और यदि कम पड़ जाती है तो कमी को कवर करने के लिए सदस्यों से अतिरिक्त योगदान की मांग की जाती है, या कमी के अनुपात में मुआवज़े के दर में कमी कर दी जाती है।

इस में कोई बाधा नहीं है कि सहकारी बीमा का प्रशासन, बीमा कराने वालों से अलग एक स्वतन्त्र संस्था संभाले, और वह बीमा चलाने के बदले में कमीशन या मज़दूरी वसूल करे, इसी तरह इस में भी कोई मनाही नहीं है कि वह निवेश में उन का एजंट होने के रूप में बीमा के धन के निवेश से प्राप्त होने वाले मुनाफे से एक हिस्सा ले।

इस प्रकार यह बात स्पष्ट है कि दोनों प्रकार में बीमा कंपनी का, बीमा धारकों से अलग एक स्वतन्त्र अस्तित्व हो सकता है, तथा वह दोनों प्रकार में एक लाभ वाली कंपनी हो सकती है - अर्थात जिस का उद्देश्य लाभ अर्जित करना हो -, और दोनों प्रकार की बीमा कपंनियों में दो बुनियादी चीज़ों में अन्तर स्पष्ट हो जाता है:

पहला अन्तर : वाणिज्यिक बीमा में बीमा कंपनी और बीमा उपभोक्ताओं के बीच एक संविदात्मक प्रतिबद्धता होती है, क्योंकि बीमा कंपनी बीमा उपभोक्ताओं को मुआवज़ा देने के लिए प्रतिबद्ध होती है, और इस के बदले में भुगतान की गई सभी क़िस्तों की हक़दार होती है। जबकि सहकारी बीमा में इस प्रतिबद्धता के लिए कोई जगह नहीं है, क्योंकि उपलब्ध क़िस्तों से ही मुआवज़े (छतिपूर्ति) का भुगतान किया जाता है, अगर उपलब्ध क़िस्तें सभी मुआवज़े की पूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं हैं तो अन्तर की पूर्ति के लिए सदस्यों से उन के योगदान को बढ़ाने की मांग की जायेगी, अन्यथा उपलब्ध राशि के अनुसार मुआवज़े का भुगतान आंशिक रूप से किया जाये गा।

दूसरा अन्तर : सहकारी बीमा का लक्ष्य, बीमा कराने वालों के द्वारा भुगतान की गई क़िस्तों और कंपनी के द्वारा उन्हें भुगतान किये गये नुक़सान के मुआवज़े के बीच अन्तर से लाभ उठाना नहीं होता है, बल्कि अगर नुक़सान की भरपाई के लिए भुगतान किए गए मुआवज़े से क़िस्तों की राशि में कुछ वृद्धि होती है तो वृद्धि की राशि बीमा कराने वालों को वापस लौटा दी जाती है। इस के विपरीत, वाणिज्यिक बीमा के मामले में बीमा के ग्राहकों के लिए मुआवज़े की प्रतिबद्धता के बदले में वृद्धि की राशि का हक़दार बीमा की कंपनी होती है।

3- अत्तआउनिय्या बीमा कंपनी में शेयर खरीदने का हुक्म :

राष्ट्रीय सहकारी बीमा कंपनी के पिछले पाँच वर्षों के वित्तीय विवरण के अध्ययन के माध्यम से यह स्पष्ट है कि इस कंपनी में शेयर खरीदना जाइज़ नहीं है, इस के निम्नलिखित कारण हैं:

प्रथम : इस कंपनी में बीमा का अनुबंध वाणिज्यिक बीमा का है सहकारी बीमा का नहीं है :

बावजूद इस के कि कंपनी ने शेयर धारकों के वित्तीय केन्द्र को बीमा की गतिविधियों के वित्तीय केन्द्र से अलग स्थापित किया है -जैसा कि सहकारी बीमा में प्रचलित है- किन्तु कंपनी जो बीमा प्रणाली व्यवहार में लाती है वह व्यावसायिक बीमा से हट कर नहीं है, जबकि कंपनी का नाम इस के विपरीत संकेत देता है, यह तथ्य निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट हो कर सामने आता है :

(क) कंपनी के संविधान में स्पष्ट रूप से वर्णन किया गया है बीमा की वृद्धि राशि जो कि बीमा की क़िस्तों के कुल योग और भुगतान किये गये मुआवज़े के बीच का अन्तर है, उस का 10 प्रति शत बीमा धारकों को वापस किया जायेगा, और शेष राशि जो कि वृद्धि राशि के 90 प्रति शत के बराबर है वह शेयर धारकों के हिस्से में जायेगी क्योंकि उन्हों ने (निवेष करके) अपने हुक़ूक़ को बीमा के जोखिम में डाला है। (कंपनी का संविधान अनुच्छेद संख्या 43, तथा सहकारी बीमा कंपनियों पर नियन्त्रण प्रणाली के कार्यकारी नियमों के अनुच्छेद संख्या : 70). इस का मतलब यह हुआ कि इस कंपनी में बीमा की प्रणाली एक संविदात्मक प्रतिबद्धता पर आधारित है, जिस के तहत मुआवज़े देने की प्रतिबद्धता के बदले में क़िस्तों के हक़दार शेयर धारक होते हैं, और यही वाणिज्यिक बीमा की वास्तविकता है। तथा अधिशेष का एक हिस्सा बीमा धारकों पर लौटाना मात्र इस अनुबंध को शरई रंग देने (धर्म संगत साबित करने) का एक प्रयास है। और सहकारी बीमा में अनिवार्य यह है कि सम्पूर्ण अधिशेष बीमा ग्राहकों के हिस्से में हो, अत: या तो उसे उन्हें वापस लौटा दिया जाये, या बीमा गतिविधियों के आकस्मिकता निधि में रखा जाये।

(ख) ऊपर वर्णित नियम को लागू करते हुए कंपनी ने वर्ष 2003 में बीमा के कारोबार से 178,914,000 (सत्तरह करोड़ नवासी लाख चौदह हज़ार) रियाल की राशि वित्तीय अधिशेष के रूप में प्राप्त किया, जिस में से 18,000,000 (एक करोड़ अस्सी लाख) रियाल अर्थात् अधिशेष राशि का 10 प्रति शत बीमा धारकों को वापस किया गया, और उस से आकस्मिकता को लेने के बाद अवशेष राशि एकत्रित अधिशेष के योग में शामिल कर दिया गया जिस से कंपनी का बीमा के कारोबार से एकत्रित अधिशेष का कुल योग 548,452,000 (चव्वन करोड़ चौरासी लाख बावन हज़ार) रियाल को पहुँच गया, और कंपनी के संविधान के अनुसार यह अधिशेष शेयर धारकों का हिस्सा माना जाता है।

(ग) यह कंपनी कुछ पुनर्बीमा कंपनियों के साथ पुनर्बीमा के अनुबंधों के द्वारा संबंधित और जुड़ी हुई है, जो आमतौर पर विदेशी कंपनियां हैं और व्यावसायिक बीमा की प्रणाली पर आधारित हैं। और यह बात ध्यान आकर्षित करने वाली है कि पुनर्बीमा की राशि, बीमा की सम्पूर्ण क़िस्तों के आधा से भी अधिक राशि का प्रतिनिधित्व करती है।

उपर्युक्त तत्वों से स्पष्ट होता है कि बीमा की सम्पूर्ण क़िस्तों के आधा से भी अधिक राशि देश (सऊदी अरब) से बाहर भेजी जाती है, और वाणिज्यिक बीमा के अनुबंध का यही स्वभाव है।

दूसरा : कुछ निषिद्ध (हराम) गतिविधियों में कंपनी का निवेश है :

कंपनी ने बीमा धारकों द्वारा भुगतान किये गए पैसे को हराम (निषिद्ध) स्टाक और बाण्ड में निवेश किया है, और वित्तीय वर्ष 2003 में इन स्टाक और बाण्ड की क़ीमत 430,525,000 (तैंतालीस करोड़ पाँच लाख पचीस हज़ार) रियाल पहुंच गई, जो कि बीमा के कारोबार से प्राप्त कुल राशि के 24 प्रति शत के बराबर है।

इसी तरह इस कंपनी ने शेयर धारकों के पैसे को भी हराम (निषिद्ध) स्टाक और बाण्ड में निवेश किया है, जिस की क़ीमत वित्तीय वर्ष 2003 में 34,981,000 (तीन करोड़ उंचास लाख इक्यासी हज़ार) रियाल को पहुँच गई थी। और यह शेयर धारकों के कुल अधिकारों के लगभग 8 प्रति शत के बराबर है।

इस के अतिरिक्त, यह कंपनी एक वाणिज्यिक बीमा कंपनी के 50 प्रति शत का मालिक है।

1- शरई मापदण्डों के अनुरूप और बीमा के लक्ष्यों को प्राप्त करने वाले एक सहकारी बीमा योजना के लिए सुझाव :

(क) सहाकरी बीमा फा प्रशासन एक शेयर धारक कंपनी करे, जिस में शेयर धारकों का एक वित्तीय केन्द्र हो जो वास्तविक रूप से बीमा अभियान के वित्तीय केन्द्र से अलग हो।

(ख) शेयर धारक कंपनी को यह अधिकार है कि बीमा कि क़िस्तों के योग से सभी प्रशासनिक और संचालन व्यय (लागत) को घटा दे, तथा बीमा अभियान को चलाने के बदले में, भाड़े के एक एजेंट के रूप में, अपनी मज़दूरी का भुगतान करे, इसी तरह उस के लिए इस बात की भी अनुमति है कि वह बीमा धारकों के पैसे को वैध निवेश की चीज़ों में निवेश करे, और इस के कारण वह एक निवेश भागीदार के रूप में उस निवेश से प्राप्त होने वाले लाभ से प्रतिश पाने का भी हक़दार है।

(ग) कंपनी के लिए अनिवार्य है कि वह निषिद्ध निवेश जैसे कि स्टॉक और बाण्ड इत्यादि में प्रवेश करने से दूर रहे, चाहे यह शेयर धारकों से संबंधित निवेश में हो या बीमा की गतिविधियों से सम्बंधित निवेश में हो।

(घ) कंपनी की बीमा धारकों को मुआवज़ा देने की प्रतिबद्धता के दो प्रकार हैं : एक जाइज़ और दूसरा निषिद्ध। जाइज़ प्रकार का मतलब यह है कि कंपनी ईमानदारी के साथ और पेशेवर तरीक़े से बीमा की गतिविधियों को चलाने के लिए प्रतिबद्ध हो, और जब भी वह इस में कोताही करे गी तो उसे कोताही का परिणाम भुगतना होगा और उस का मुआवज़ा भुगतान करना होगा। और निषिद्ध प्रकार यह है कि वह कंपनी सामान्य रूप से मुआवज़े का भुगतान करने के लिए प्रतिबद्ध हो चाहे वह नुकसान और छति कपंनी की ओर से हो या उसके अलावा की तरफ से, और यह सहकारी बीमा के मूल सिद्धान्तों के विरूद्ध है। बल्कि इस के बजाय कंपनी को बीमा की क़िस्तों से बढ़ी हुई राशि से आकस्मिकता निधि स्थापित करना चाहिए, और इस आकस्मिकता निधि को शेयर धारकों के अधिकारों की सूची में शामिल नहीं करना चाहिए बल्कि इसे बीमा की गतिविधियों के लिए विशिष्ट रखना चाहिए।

(ङ) कंपनी जोखिम के विखण्डन के लिए पुनर्बीमा के अनुबंधो से जुड़ सकती है, बशर्ते कि ये अनुबंध सहकारी बीमा के प्रकार से हो।

अन्त में, हम सर्वशक्तिमान और महान अल्लाह से दुआ करते हैं कि वह कंपनी के प्रबंधकों को हर भलाई की तौफीक़ (सक्षमता) प्रदान करे, तथा हमारा, उनका और समस्त मुसलमानों का उस चीज़ की तरफ मार्गदर्शन करे जिस से वह प्यार करता और प्रसन्न होता है, तथा अल्लाह तआला हमारे सन्देष्टा मुहम्मद पर दया और शान्ति अवतरित करे।

हस्ताक्षर कर्ता :

1- डॉ. मोहम्मद बिन सऊद अल उसैमी, अल बिलाद बैंक के शरीया परिषद के जनरल निदेशक।

2- डॉ. यूसुफ बिन अब्दुल्लाह अश्शबीली, इमाम मोहम्मद बिन सऊद इस्लामी विश्वविद्यालय के उच्चतर न्यायिक संस्थान (अल माहदुल आ़ली लिल क़ज़ा) में फैकल्टी के सदस्य।

3- प्रो. डॉ. सुलैमान बिन फहद अल ईसा, इमाम मोहम्मद बिन सऊद इस्लामी विश्वविद्यालय के स्नातक अध्ययन के प्रोफेसर।

4- प्रो. डॉ. सालेह बिन मोहम्मद अल सत्तान, क़सीम विश्वविद्यालय में फिक़्ह के प्रोफेसर।

5- डॉ. अब्दुल अज़ीज़ बिन फौज़ान अल फौज़ान, इमाम मोहम्मद बिन सऊद इस्लामी विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर।

6- डॉ. अब्दुल्लाह बिन मूसा अल अम्मार, इमाम मोहम्मद बिन सऊद इस्लामी विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर.

इस्लाम प्रश्न और उत्तर

स्वास्थ्य बीमा में भाग लेने का हुक्म

स्वास्थ्य बीमा में भाग लेने का हुक्म

प्रश्नः

हम एक चिकित्सा संस्थान हैं, हम अपने साथ अनुबंधित कंपनियों के बीमारों के लिए इलाज सेवायें देने के मैदान में काम करते हैं। कंपनियों के साथ अनुबंध की शर्तों में से एक यह है कि : रोगी हर बार हमारे पास आने (प्रत्येक विज़िट) के बदले एक निश्चित राशि का भुगतान करेगा, जो हमारे उस की कंपनी से कुल मांग की राशि से कट जायेगा। प्रश्न यह है कि : क्या शरीअत के दृष्टि कोण से हमारे लिए यह जाइज़ है कि हम उस राशि को जिसे रोगी भुगतान करता है समाप्त कर दें और उसे हम स्वयं उस की ओर से सहन करें, ताकि हम रोगियों को अपनी तरफ आकर्षित कर सकें, और वे किसी अन्य सेवा प्रदाता पर हमें प्राथमिकता दें ? ज्ञात रहे कि ये कंपनियाँ बीमा की कंपनियाँ है जो उन कंपनियों के कर्मचारियों को चिकित्सा सेवायें प्रदान करने के मैदान में काम करती हैं जो इन के साथ और हमारे अलावा अन्य समान चिकित्सा संस्थाओं के साथ ठेका किये होती हैं।

उत्तरः

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।

वाणिज्यिक बीमा के सभी अनुबंध (मामले) जुआ पर आधारित हैं, और उन में अज्ञानता और जोखिम पाया जाता है, इसी कारण अधिकांश समकालीन विद्वान और धर्मशास्त्र समितियाँ उस के हराम होने की ओर गई हैं, और इस से केवल थोड़े ही लोग ऐसे हैं जो इस के विरूद्ध विचार रखते हैं, और उन्हीं लोगों का मत सत्य है जो इस के हराम होने की ओर गये हैं ; क्योंकि उन के प्रमाण स्पष्ट और ठोस हैं।

यह व्यावसायिक बीमा के बारे में है, जिसे दुनिया में अक्सर लोग करते हैं, वे दुर्घटनाओं, या इलाज (चिकित्सा उपचार), दीयत (खून का पैसा), या सामानों या वाहनों इत्यादि के बीमा के लागत को कवर करने के लिए बीमा कंपनियों के साथ समझौता करते हैं। तथा उन कंपनियों के साथ समझौता करने वाला उन की सरकारें, या संस्थायें, या कारखाने हो सकते हैं।

इन मामलों के हराम होने का कारण अत्यन्त स्पष्ट है, होता यह है कि भागीदार व्यक्ति दुर्घटनाओं या इलाज के बीमा के लिए क़िस्तों का भुगतान करता है, फिर वह बीमार नहीं होता है, और न ही उस के साथ कोई दुर्घटना घटती है, अत: उस ने जो पैसे बीमा कंपनियों को भुगतान किये होते हैं वे नष्ट (व्यर्थ) हो जाते हैं, इस के विपरीत कभी वह एक या दो क़िस्तें भुगतान करता है फिर बीमार हो जाता है या उस के साथ कोई दुर्घटना घट जाती है तो वे उसे उस के कई गुना पैसे भुगतान करते हैं जितना कि वे उस से लिए होते हैं, और यही जुआ, अज्ञानता और जोखिम है।

और आप लोग जो अपनी संस्था में करते हैं कि स्वयं भागीदार से लागत का एक भाग वसूल करें या सिरे से उस से कुछ भी न लें : ये सब निषेद्ध के हुक्म को कुछ भी प्रभावित नहीं करता।

स्थायी समिति के विद्वानों से प्रश्न किया गया कि :

स्वास्थ्य बीमा के बारे में शरीअत का क्या हुक्म है, इस प्रकार कि बीमा कराने वाला बीमा कंपनी को प्रति माह या सालाना एक राशि भुगतान करता है, जिस के बदले में कंपनी बीमा कराने वाले व्यक्ति का आवश्यकता पड़ने पर अपने खर्च पर इलाज करवाती है, यह ज्ञात रहे कि यदि बीमा कराने वाले के इलाज की आवश्यकता नहीं पड़ती है तो उस ने जो कुछ बीमा की राशि भुगतान की है उसे (कंपनी से) वापस नहीं ले सकता है।

ते उन्हों ने उत्तर दिया :

"यदि स्वास्थ्य बीमा की वस्तुस्थिति वही है जो आप ने उल्लेख की है तो यह जाइज़ नहीं है ; क्योंकि इस में धोखा और जोखिम पाया जाता है, इसलिए कि हो सकता है कि अपनी स्वास्थ्य का बीमा कराने वाला आदमी बहुत अधिक बीमार हो और उस ने कंपनी को जो राशि भुगतान की है उस से अधिक का इलाज कराये, और अतिरिक्त राशि के भुगतान का वह बाध्य न हो, और यह भी संभव है कि वह उदाहरण के तौर पर एक या दो महीना बीमार ही न हो, और उस ने कंपनी को जो भुगतान किए हैं उसे वापस न लौटाया जाये, और जो भी इस तरह का है : वह जुआ का एक प्रकार (रूप) है।" (समिति की बात समाप्त हुई)

शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़, शैख अब्दुल्लाह बिन ग़ुदैयान, शैख अब्दुल्लाह बिन क़ऊद।

"फतावा स्थायी समिति" (15 / 296).

तथा स्थायी समिति के विद्वानों से प्रश्न किया गया कि :

हम अमेरिका में छात्र के रूप में रहते हैं, दूतावास हमारे लिए स्वास्थ्य उपचार की सुविधा उपलब्ध कराता है, और वह इस प्रकार कि प्रत्येक छात्र के लिए बीमा (इन्शोरेंस) का प्रबंध करता है, अर्थात् यह कि : वह बीमा कंपनी को प्रत्येक छात्र की तरफ से एक राशि का भुगतान करता है, इस तरह हर छात्र के पास एक स्वास्थ्य बीमा कार्ड होता है, अत: इस चीज़ के बार में आप का क्या विचार है, यह जानते हुए कि इलाज बहुत मंहगा है ?

तो उन्हों ने उत्तर दिया कि :

"स्वास्थ्य बीमा, वाणिज्यक बीमा में से है, और वह हराम है।" (समिति की बात समाप्त हुई).

शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़, शैख अब्दुर्रज़्ज़ाक़ अफीफी, शैख अब्दुल्लाह बिन ग़ुदैयान।

"फतावा स्थायी समिति" (15/298 - 299)

इसी तरह उन्हों ने स्वास्थ्य सेवाओं के लिए "रामतान" की प्रणाली के बारे में, तथा "अस्सुमैरी अस्पताल" की प्रणाली (सिस्टम) के बारे में बिल्कुल यही उत्तर दिया, तथा उन संस्थाओं, कंपनियों और अस्पतालों में भिन्न और अनेक तरीक़े प्रचलित हैं, लेकिन उन सब का हुक्म एक है ; क्योंकि उन सब के सिस्टम उन के अनुबंधों के जुआ, अज्ञानता (अस्पष्टता) और जोखिम पर आधारित होने पर सहमत हैं।

देखिए : "फतावा स्थायी समिति" (15/303 - 307) और (15/317 - 321).

और अल्लाह तआला सब से श्रेष्ठ ज्ञान रखता है।

इस्लाम प्रश्न और उत्तर

बीमा की वास्तविकता और उसका हुक्म

बीमा की वास्तविकता और उसका हुक्म

प्रश्नः

आजकल प्रचलित वाणिज्यिक बीमा का क्या हुक्म है ?

उत्तरः

हर प्रकार की प्रशंसा और स्तुति अल्लाह के लिए योग्य है।

1- सभी प्रकार का वाणिज्यिक बीमा नि:सन्देह स्पष्ट सूद (व्याज़) है, यह पैसों को उस से कम या अधिक पैसों के बदले उन में से एक को विलंब करके बेचना है, अत: इस में "रिबा अल-फज्ल" (वृद्धि का सूद) और "रिबा अन्नसीआ" (उधार का सूद) दोनों पाया जाता है, क्योंकि बीमा वाले लोग (कंपनियाँ) लोगों के पैसे लेते हैं और जिस निर्धारित घटना के विपरीत बीमा किया गया है उसके घटित होने पर उन्हें उस से कम या अधिक पैसे देने का वादा करते हैं। और यही सूद है, और सूद क़ुर्आन करीम की कई आतयतों के आधार पर हराम (वर्जित) है।

2- सभी प्रकार के वाणिज्यिक बीमा जुआ पर आधारित हैं जो क़ुरआन करीम की आयत के अनुसार हराम है, अल्लाह तआला का फरमान है :

[المائدة: ٩٠]

"ऐ ईमान वालो ! शराब, जुआ, और मूर्तियों की जगह, और पाँसे, गन्दे शैतानी काम हैं, इसलिए तुम इस से अलग रहो ताकि कामयाब हो जाओ।" (सूरतुल माईदा : 90)

बीमा अपने सभी प्रकार के साथ भाग्य का खेल है, वे आप से कहते हैं कि इतना भुगतान करो, अगर आप के साथ ऐसा होगा तो हम आप को इतना दें गे, और यह हूबहू जुआ है, तथा बीमा और जुआ के बीच अंतर करना हठ है जिसे शुद्ध बुद्धि स्वीकार नहीं करती, बल्कि स्वयं बीमा वाले लोग इस बात को स्वीकारते हैं कि बीमा एक जुआ है।

3- वाणिज्यिक बीमा के सभी प्राकर धोखा हैं, और धोखा बहुत सारी सहीह हदीसों के कारण हराम है, उसी में से अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है कि : "पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कंकरी की बिक्री और धोखे की बिक्री से मना किया है।" (इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है )। (कंक्री की बिक्री कई एक व्याख्याएं हैं जिन में से उदाहरण के तौर पर एक यह है किः बेचने वाला कंक्री मार कर कहेः इन कपड़ों में से जिस कपड़े पर यह कंक्री लग जाये उसे मैं ने तुम से बेच दिया।)

वाणिज्यिक बीमा के सभी प्रकार धोखा पर आधारित हैं, बल्कि स्पष्ट और व्यापक धोखा पर आधारित हैं, बीमा की सभी कंपनियाँ, और हर वह व्यक्ति जो बीमा बेचता है, वह किसी असंभावित खतरे के विरूद्ध बीमा को निश्चित रूप से नकारता है, अर्थात यह आवश्यक है कि खतरे का घटित होना और घटित न होना संभावित हो ताकि वह बीमा के योग्य बन सके, इसी प्रकार खतरे के घटित होने के समय और उस की मात्रा का ज्ञान होना निषिद्ध है, इस तरह बीमा में धोखा और अस्पष्टता के तीनों व्यापक प्रकार एकत्र हो जाते हैं।

4- वाणिज्यिक बीमा अपने सभी रूपों में अवैध रूप से लोगों का माल खाना है, और यह क़ुरआन की आयत के अनुसार हराम (वर्जित) है, अल्लाह तआला का फरमान है :

ﭷﭸ ﭻﭼ ﭿ [النساء: ٢٩]

"हे ईमान वालो (विश्वासियो)! तुम आपस में अपनी संपत्ति को अवैध ढंग से न खाओ, लेकिन यह कि तुम्हारी आपसी सहमति से एक व्यापार हो।" (सूरतुन निसा : 29)

वाणिज्यिक बीमा अपने सभी रूपों में लोगों के धन को अवैध रूप से खाने के लिए एक धोखाधड़ी की कार्रवाई है, एक जर्मन विशेषज्ञ के एक सूक्ष्म आँकड़े ने यह साबित कर दिया है कि लोगों को जो धन लौटाया जाता है उस का अनुपात उन से लिए गये धन के 2.9% के बराबर भी नहीं होता है।

अत: बीमा उम्मत (राष्ट्र) के लिए बहुत बड़ी छति है, और काफिरों का कृत्य कोई हुज्जत (तर्क) नहीं है जिनके संबंध कट चुके हैं और वे बीमा के लिए विवश हो गये हैं, हालाँकि वे इसे मौत को नापसंद करने की तरह नापसंद करते हैं।

यह कुछ महान धार्मिक उल्लंघन हैं जिन के बिना बीमा संपन्न नहीं हो सकता, इनके अलावा उस में अन्य कई उल्लंघन और वर्जनायें है जिनके उल्लेख का यह स्थान गुनजाइश नहीं रखता, और उनके उल्लेख करने की कोई आवश्यकता भी नहीं है क्योंकि उपर्युक्त उल्लंधनों में से केवल एक उल्लंधन ही उसे अल्लाह की शरीअत की दृष्टि में सब से बड़ा वर्जित और निषिद्ध काम ठहराने के लिये पर्याप्त है।

यह अफसोस की बात है कि कुछ लोग बीमा के अधिवक्ताओं के फरेब और छल का शिकार बन जाते हैं क्योंकि वे इसे उनके लिए सुसज्जित और सुशोभित करके पेश करते हैं और इसे उन पर संदिग्घ बना देते हैं, जैसे कि उसे सहायक बीमा, या साम्य बीमा, या इस्लामी बीम, या इन के अलावा कोई अन्य नाम देना जो इस की बातिल हक़ीक़त को कुछ भी नहीं बदल सकते।

जहाँ तक इस तथ्य का संबंध है कि बीमा के अधिवक्ता यह दावा करते हैं कि विद्वानों ने सहकारी बीमा के वैध (हलाल) होने का फत्वा दिया है, तो यह एक झूठ और लांछन है, और इस में भ्रम का कारण यह है कि बीमा के कुछ अधिवक्ता बीमा के एक नक़ली रूप के साथ जिस का बीमा से कोई संबंध नहीं, विद्वानों के पास गये और कहा कि यह बीमा का एक प्रकार है और उसे (सुसज्जित करते हुए और लोगों पर संदिग्ध बनाते हुये) सहकारी बीमा का नाम दिया, और कहा कि यह मात्र दान करने के अध्याय से है, और यह उस सहयोग में से है जिस का अल्लाह तआला ने अपने इस फरमान में आदेश दिया है : "नेकी और तक़्वा (ईश्भय और संयम) के कामों पर एक दूसरे का सहयोग करो।", और इस का उद्देश्य लोगों पर आने वाली भारी आपदाओं को कम करने पर सहयोग करना है, जबकि सही बात यह है कि जिसे वे लोग सहकारी बीमा का नाम देते हैं वह बीमा के अन्य प्रकार की तरह ही है, और अंतर केवल रूप में है वास्तविकता और मूल तत्व में कोई अंतर नहीं है, और वह मात्र दान से बहुत दूर है, तथा नेकी और संयम (परहेज़गारी) के कामों पर सहयोग से अति दूर है, बल्कि निश्चिति रूप से वह पाप और आक्रामकता पर सहयोग है, उसका मक़सद आपदाओं को कम करना और उसका सुधार करना नहीं है बल्कि उसका उद्देश्य अवैध ढंग से लोगों के धन को खाना है, अत: वह निश्चित रूप से बीमा के अन्य प्रकार की तरह हराम (वर्जित) है, इसलिए उन्हों ने जो कुछ विद्वानों के सम्मुख प्रस्तुत किया है उस का बीमा से कोई संबंध नहीं है।

जहाँ तक कुछ लोगों का कुछ फालतू राशि को लौटाने का दावा है, तो यह उस के हुक्म को कुछ भी नहीं बदल सकता, और बीमा को सूद, जुआ, धोखाधड़ी, अवैध ढंग से लोगों का माल खाने, अल्लाह तआला पर भरोसा के विरूद्ध होने, और इनके अलावा अन्य वर्जित तत्वों से नहीं बचा सकता, यह केवल धोखा देना और लोगों पर उनके मामले को संदिग्ध करना है, और जो व्यक्ति अधिक जानकारी चाहता है वह (बीमा और उसके प्रावधान) नामी पत्रिका देखे। तथा मैं अपने धर्म पर गैरत का एहसास रखने वाले हर मुसलमान से जो अल्लाह तआला और परलोक के दिन की आशा रखता है, यह आह्वान करता हूँ कि वह अपने अंदर अल्लाह तआला का डर पैदा करे, और हर प्रकार के बीमा से बचाव करे, चाहे वह मासूमियत का कितना भी जोड़ा पहने हुये हो और जितने भी चमकदार कपड़ों में सुसज्जित हो, क्योंकि इस में कोई सन्देह नहीं कि वह हराम है, और इस तरह वह अपने धर्म और धन को सुरक्षित कर लेगा, और शांति के मालिक अल्लाह सुब्हानहु व तआला की तरफ से शांति और सुरक्षा से लाभान्वित होगा।

अल्लाह तआला मुझे और आप को धर्म की समझ प्रदान करे और सर्व संसार के पालनहार की प्रसन्नता का कार्य करने की तौफीक़ दे।

स्रोत : क़सीम में शरीया कालेज के अध्यापक शैख डा. सुलैमान बिन इब्राहीम अस्सुनैयान की पुस्तक "खुलासा फी हुकमित्तामीन" (बीमा के हुक्म का सारांश)।