الأربعاء، 18 أغسطس 2010

रमज़ान के महीने में फिल्मों, धारावाहिकों और खेल में समय बिताना

रमज़ान के महीने में फिल्मों, धारावाहिकों और खेल में समय बिताना

कुछ रोज़ेदार रमज़ान के दिन का अधिकतर समय वीडियो और टीवी पर फिल्मों और धारावाहिकों (सीरियल) के देखने और कार्ड (ताश, पत्ते) खेलने में गुज़ारते हैं, तो इसका क्या हुक्म है ?

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।

रोज़ेदार तथा अन्य मुसलमान पर अनिवार्य है कि वह सभी समयों में जो कुछ करता और जो कुछ छोड़ता है, उस में अल्लाह सुब्हानहु व तआला से डरता रहे, तथा वह अल्लाह तआला की हराम की हुई (निषेध) चीज़ को देखने से बचे, जैसे कि अश्लील फिल्में जिन में अल्लाह तआला की वर्जित की हुई चीज़ें नग्न और अर्द्ध नग्न छवियां (तस्वीरें), और बुरी और घृणित बातें प्रस्तुत की जाती हैं। इसी प्रकार जो टीवी पर अल्लाह तआला की शरीअत के विरूध छवियां, गाने, संगीत, गाने-बजाने के यन्त्र (वाद्ययन्त्र) और भ्रामक विज्ञापन और भ्रष्ट दावे प्रकाशित किये जाते हैं। इसी तरह प्रत्येक मुसलमान पर, चाहे वह रोज़ेदार हो या कोई अन्य, यह अनिवार्य है कि वह खेल (लह्व व लईब) के यन्त्रों से खेलने, जैसे कार्ड (पत्ते, ताश) इत्यादि खेलने से बचे। क्योंकि इस में बुराई (निषेध चीज़) का देखना और बुराई का करना पाया जाता है, तथा इस में दिल की कठोरता, उसकी बीमारी, उसके अल्लाह की शरीअत का अपमान करने (उसे कमतर समझने) और अल्लाह तआला की अनिवार्य की हुई चीज़ों जैसे जमाअत के साथ नमाज़ से उपेक्षा करने या अन्य कर्तव्यों के छोड़ने और बहुत सी हराम चीज़ों में पड़ने का कारण बनना है। अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है :

"और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बेकार (लग्व) बातों को मोल लेते हैं कि अज्ञानता के साथ लोगों को अल्लाह के मार्ग से बहकायें और उसे हंसी (मज़ाक, उपहास) बनायें, यही वे लोग हैं जिनके लिए अपमानजनक अज़ाब (यातना) है। जब उस के सामने हमारी आयतों का पाठ किया जाता है तो घमण्ड करते हुए इस तरह मुंह फेर लेता है मानो कि उस ने उन्हें सुना ही नहीं गोया कि उस के दोनों कानों में डाट लगे हुए हैं, आप उसे कष्टदायक यातना की सूचना दे दीजिये।" (सूरत लुक़मान : 6 - 7)

तथा अल्लाह तआला सूरत अल-फुरक़ान के अन्दर अपने बन्दों के गुण का उल्लेख करते हुए फरमाता है :

"और जो लोग झूठ (बुरी बात) पर उपस्थित नहीं होते और जब किसी बेकार चीज़ पर उनका गुज़र होता है तो शराफत (सज्जनता) के साथ गुज़र जाते हैं।" (सूरतुल फुरक़ान : 72)

आयत में "अज़्ज़ूर" (अर्थात् झूठ) का शब्द सभी प्रकार की बुराई को सम्मिलित है, और "ला यश्हदूना" का अर्थ उपस्थित नहीं होते (हाज़िर नहीं होते) के है।

तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं : "मेरी उम्मत में ऐसे लोग होंगे जो व्यभिचार, रेशम, शराब और गाने बजाने के यन्त्र (वाद्ययन्त्र) को हलाल ठहरा लेंगे।" इस हदीस को इमाम बुखारी ने अपनी सहीह में सुदृढ़ शब्दों के साथ "तालीक़न" रिवायत किया है।

तथा इसलिए भी कि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने मुसलमानों पर हराम (निषेध) में पड़ने के साधनों (कारणों) को वर्जित ठहराया है, और इस में कोई सन्देह नहीं कि बुरी फिल्मों और टीवी पर प्रकाशित की जाने वाली बुराईयों को देखना, उन बुराईयों में पड़ने या उन को नकारने में लापरवाही करने या लचीला होने के साधनों (कारणों) में से है। और अल्लाह तआला ही से सहायता मांगी जा सकती है।

फतावा शैख इब्ने बाज़ रहिमहुल्लाह 4/158.