पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म दिन का यादगार समारोह आयोजित करने का हुक्म
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान सर्व संसार के पालनहार अल्लाह के लिए योग्य है, तथा हमारे ईश्दूत मुहम्मद, आप के परिवार और सभी साथियों पर अल्लाह तआला की दया और शान्ति अवतरित हो, हम्द व सलात के बाद :
पवित्र क़ुरआन और हदीस शरीफ में अल्लाह और उस के पैगंबर की शरीअत का पालन करने का आदेश और धर्म में नई चीज़ों (नावाचार) के अविष्कार करने का जो निषेद्ध वर्णित हुआ है वह किसी पर रहस्य नहीं है, अल्लाह तआला का फरमान है : ``कह दीजिए कि अगर तुम अल्लाह तआला से महब्बत रखते हो तो मेरी पैरवी (अनुसरण) करो, स्वयं अल्लाह तआला तुम से महब्बत करेगा और तुम्हारे गुनाह माफ कर देगा और अल्लाह तआला बड़ा माफ करने वाला और बहुत मेहरबान (दयालु) है।" (सूरत आल इम्रान: 31)
तथा अल्लाह तआला का फरमान है : "जो (धर्म शास्त्र) तुम्हारे पालनहार की तरफ से तुम्हारी ओर अवतरित की गई है उस की पैरवी करो, और उस के सिवाय दूसरे औलिया की पैरवी न करो, तुम लोग बहुत कम नसीहत हासिल करते हो।" (सूरतुल आराफ : 3)
तथा अल्लाह तआला ने फरमाया : "और यही धर्म मेरा मार्ग है जो सीधा है, अत: इसी मार्ग पर चलो, और दूसरी पगडण्डियों पर न चलो कि वे तुम्हें अल्लाह के मार्ग से अलग कर देंगी, इसी का अल्लाह तआला ने तुम को आदेश दिया है ताकि तुम परहेज़गार (संयमी, ईश-भय रखने वाले) बनो।" (सूरतुल अंआम: 153)
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "सब से सच्ची बात अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल की किताब है, और सब से बेहतरीन तरीक़ा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का तरीक़ा है, और सब से बुरी बात धर्म में नयी ईजाद कर ली गई चीज़ें हैं।"
तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "जिस ने हमारी इस शरीअत में कोई ऐसी चीज़ ईजाद की जिस का इस से कोई सम्बंध नही है तो उसे रद्द (अस्वीकृत) कर दिया जाये गा।" इसे बुखारी (हदीस संख्या : 267) और मुस्लिम (हदीस संख्या : 1718) ने रिवायत किया है। और मुस्लिम की एक अन्य रिवायत में है कि : "जिस ने कोई ऐसा काम किया जो हमारी शरीअत के अनुसार नहीं है तो उसे रद्द (अस्वीकृत) कर दिया जायेगा।"
लोगों ने जो घृणित बिद्अतें (निन्दित नवाचार) ईजाद कर ली हैं उन में से एक रबीउल अव्वल के महीने में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म दिवस का यादगार (स्मरण उत्सव) मनाना है, और वे लोग इस यादगार समारोह को विभिन्न प्रकार से आयोजित करते हैं :
- उन में से कुछ ऐसे हैं जो इस दिन मात्र एकत्र होकर जन्म-कथा पढ़ते हैं, या उस में भाषण दिये जाते हैं और इस अवसर से सम्बंधित (नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सराहना में कवितायें ) क़सीदे पेश किए जाते हैं।
- कुछ लोग खाना और मिठाई आदि बनाते हैं, और उन्हें उपस्थित लोगों को पेश करते हैं।
- उन में से कुछ लोग इस समारोह को मस्जिदों में आयोजित करते हैं और कुछ लोग इस महफिल को घरों में सजाते हैं।
- कुछ लोग ऐसे भी हैं जो उपर्युक्त चीज़ों पर बस नहीं करते हैं, बल्कि उन का यह उत्सव हराम और अवैध चीज़ों पर आधारित होता है, जैसे कि मर्दो और औरतों का मिश्रण (इख्तिलात), नाच, गाना, या शिर्क वाले काम जैसेकि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से फर्याद चाहना, आप को पुकारना, तथा आप के द्वारा दुश्मनों पर विजय मांगना वग़ैरह।
इस में कोई सन्देह नहीं कि यह अपने सभी प्रकार और विभिन्न रूपों, तथा इस के मनाने वालों के विभिन्न उद्देशों (मक़ासिद) के साथ एक हराम (वर्जित) बिद्अत (नवाचार) है जिसे सर्वश्रेष्ठ शताब्दियों के (एक लम्बे समय के) बाद फातिमी शीयों ने मुसलमानों के धर्म का विनाश करने के लिए अविष्कार किया है। और इन के बाद इस (ईद मीलादुन्नबी समारोह) का सब से पहला प्रदशर्न छठी या सातवीं शताब्दी हिजरी में इरबल नामी नगर के राजा मुज़फ्फर अबू सईद कौकबूरी ने किया है, जैसाकि इतिहासकारों जैसे कि इब्ने खलक्कान वगैरा ने उल्लेख किया है।
अबू शामा कहते हैं कि : मौसिल नामी नगर में जिस ने सब से पहले इस बिद्अत को किया वह एक सुप्रसिद्ध सदाचारी शैख उमर बिन मुहम्मद मुल्ला है, और इरबल के शासक और अन्य लोगों ने इस बारे में उसी का अनुसरण किया है।
हाफिज़ इब्ने कसीर अपनी पुस्तक "अल बिदाया वन्निहाया" (13 / 137) में अबू सईद कौकबूरी की जीवनी में कहते हैं कि : "वह रबीउल अव्वल में मीलाद शरीफ करता था और इस अवसर पर एक विशाल समारोह आयोजित करता था . . . यहाँ तक कि उन्हों ने आगे फरमाया : अल बस्त ने कहा : राजा मुज़फ्फर के मीलाद के अवसर पर आयोजित होने वाले किसी समारोह में उपस्थित होने वाले किसी आदमी ने वर्णन किया कि वह इस भोज में पाँच हज़ार भूने हुए बकरे, दस हज़ार मुर्गियाँ, एक लाख बर्तन और तीस हज़ार ट्रे मिठाईयाँ प्रस्तुत करता था . . . यहाँ तक कि आगे कहा कि : तथा वह सूफियों के लिए ज़ुह्र से लेकर फज्र तक महफिले सिमाअ (संगीत) का प्रतिबंध करता था और खुद भी उन के साथ नाचता था।
तथा इब्ने खलक्कान अपनी किताब "वफयातुल आयान" (3 / 74) में कहते हैं : जब सफर के महीने का आरम्भ होता था, तो वे लोग उन गुंबदों को विभिन्न प्रकार के उत्कृष्ट और सौन्द्रय प्रदर्शित श्रृंगार के द्वारा सजाते थे, और हर गुंबद में गायकों का एक समूह, और अध्यात्मिक लोगों तथा हर्ष प्रधान कलाकारों का एक समूह बैठता था, और उन वर्गों (गुंबदों के वर्गों) में से किसी वर्ग को उस में किसी समूह को बैठाये बिना नहीं छोड़ते थे।
उस अवधि के दौरान लोगों की जीविका (रोज़गार) निरस्त हो जाती थी, समारोह का दर्शन करने और घूमने फिरने के सिवाय उन का कोई काम नहीं होता था . . . "यहाँ तक कि उन्हों ने आगे कहा कि : "जब मीलाद में दो दिन रह जाता (अर्थात मीलाद से दो दिन पहले) तो ऊंटों, गायों और बकरियों की इतनी अधिक संख्या बाहर निकालता जो वर्णन (गणना) से बाहर है, और उन्हें उस के पास जो भी ढोल, संगीत और मनोरंजन के यन्त्र होते थे उन के साथ रवाना करता यहाँ तक कि उन्हें मैदान में लेकर आता . . ." यहाँ तक कि उन्हों ने आगे फरमाया : "जब मीलाद की रात होती तो वह क़िला में मग्रिब की नमाज़ पढ़ने के बाद महफिले सिमाअ (नाच गान) का आयोजन करता था।"
तो यह रही पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म दिन के यादगार के अवसर पर समारोह को आयोजित करने का आरम्भ, जो कि बहुत बाद में उत्पन्न हुआ है और अपने साथ लह्व व लइब (खेल तमाशा) अपव्यय (फुज़ूल खर्ची) और एक ऐसी बिद्अत (नवाचार) के पीछे धन और समय को नष्ट करने के साथ (उत्पन्न हुआ) है जिस की अल्लाह तआला ने कोई सनद नहीं उतारी है।
एक मुसलमान के लिए योग्य यह है कि वह सुन्नतों को जीवित करे, बिद्अतों को मिटाये और किसी काम को करने के लिए क़दम न उठाये यहाँ तक कि उस के बारे में अल्लाह का हुक्म जान ले।
मीलादुन्नबी का यादगार समारोह आयोजित करने का हुक्म :
पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म दिन के अवसर पर समारोह आयोजित करना कई कारणों के आधार पर निषिद्ध और खण्डित (अस्वीकृत) है :
पहला : यह न तो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत से प्रमाणित है और न ही आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के खुलफा रज़ियल्लाहु अन्हुम की सुन्नत (तरीक़े) से प्रमाणित है। और जो चीज़ इस तरह की हो वह निषिद्ध बिदअतों में से है, क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : "तुम मेरी सुन्नत और मेरे बाद हिदायत याफ्ता (पथ प्रदर्शित) ख़ुलफा-ए-राशिदीन की सुन्नत को लाज़िम पकड़ो, उसे दृढ़ता से थाम लो और उसे दाँतों से जकड़ लो। और धर्म में नयी ईजाद कर ली गई चीज़ों (नवाचार) से बचो, क्योंकि धर्म में हर नई ईजाद कर ली गई चीज़ बिद्अत है, और हर बिद्अत गुमराही (पथ भ्रष्टता ) है।" (मुस्नद अहमद 4/128, तिर्मिज़ी हदीस संख्या : 2676).
और पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म दिन का जश्न मनाना एक नई अविष्कार कर ली गई चीज़ (नवाचार) है जिसे फातिमी शीयों ने इस्लाम की प्रारंभिक सर्वश्रेष्ठ शताब्दियों के बाद मुसलमानों के धर्म को भ्रष्ट करने के लिए अविष्कार किया है। और जिस व्यक्ति ने अल्लाह तआला की निकटता प्राप्त करने के लिए कोई ऐसा काम किया जिसे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने नहीं किया है और न ही उस के करने का आदेश दिया है, और न ही उसे आप के बाद आप के खुलफा (उत्तराधिकारियों) ने किया है, तो उस का यह काम (कृत्य) पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को इस बात से आरोपित करने पर आधारित है कि आप ने लोगों के लिए उन के धर्म को स्पष्ट रूप से बयान नहीं किया है, तथा अल्लाह तआला के इस कथन को झुठलाने को शामिल है कि : "आज मैं ने तुम्हारे लिए तुम्हारे धर्म को मुकम्मल कर दिया।" (सूरतुल माईदा: 3) क्योंकि वह एक ऐसी वृद्धि लेकर आया है जिसे वह धर्म से गुमान करता है हालांकि पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उसे लेकर नहीं आये हैं।
दूसरा : पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म दिन के यादगार में समारोह आयोजित करने में ईसाईयों की छवि अपनाना पाया जाता है, क्योंकि वे लोग भी मसीह अलैहिस्सलाम के जन्म दिन के यादगार का जश्न मनाते हैं, और उन की छवि अपनाना (नकल करना) सख्त हराम है, चुनांचि हदीस में कुफ्फार की छवि अनपाने (नकल करने) से रोका गया है और उन का विरोध करने का आदेश दिया गया है, पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "जिस ने किसी क़ौम (जाति) की छवि अपनायी वह उन्हीं में से है।" (मुस्नद अहमद 2/50, अबू दाऊद 4/314) तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "मुश्रिकों का विरोध करो।" (सहीह मुस्लिम 1/222 हदीस संख्या : 259), विशेष रूप से उन चीज़ों में जो उन के धर्म के प्रतीकों में से है।
तीसरा : रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म दिन का यादगार उत्सव आयोजित करना बिद्अत (नवाचार) और ईसाईयों की समरूपता होने के साथ साथ, हालांकि इन में से हर एक हराम (वर्जित) है, यह आप का सम्मान करने में ग़ुलू और मुबालग़ा (अतिशयोक्ति) है यहाँ तक कि वह अल्लाह तआला के सिवाय आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को पुकारने और आप से फर्याद चाहने तक पहुँचा देता है, जैसाकि आज मीलादुन्नबी की बिदअत को मनाने वाले बहुत से लोगों की वस्तुस्थिति यही है कि वे अल्लाह के सिवाय रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को पुकारते, और आप से मदद माँगते हैं, तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सराहना में शिर्क पर आधारित क़सीदे (कवितायें) जैसे कि क़सीदतुल बुर्दा इत्यादि पढ़ते हैं, जबकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी सराहना और प्रशंसा में अतिशयोक्ति (गुलू) करने से मना फरमाया है, आप ने फरमाया : "मेरी इस प्रकार बढ़ा चढ़ा कर प्रशंसा न करो जैसाकि ईसाईयों ने मर्यम के बेटे -ईसा अलैहिस्सलाम- के साथ किया कि उन की प्रशंसा में सीमा लांघ गए, मैं उस का बन्दा (उपासक और दास) हूँ। अत: तुम मुझे अल्लाह का बन्दा और उस का रसूल (ईश्दूत, पैग़म्बर) कहो।" (सहीह बुखारी 4/142 हदीस संख्या : 3445, फत्हुल बारी 6/551)
अर्थात मेरी स्तुति, तारीफ और मेरे सम्मान में सीमा से आगे न बढ़ो जिस प्रकार कि ईसाई लोग मसीह अलैहिस्सलाम की प्रशंसा और उन के सम्मान में सीमा को लांघ गये यहाँ तक कि अल्लाह के सिवाय उन की पूजा करने लगे, जबकि अल्लाह तआला ने अपने इस कथन के द्वारा उन्हें इस चीज़ से मना कर दिया था : "ऐ अह्ले किताब ! अपने धर्म में ग़ुलू (अतिशयोक्ति) न करो, और अल्लाह के ऊपर सच ही बोलो, बेशक मर्यम के बेटे ईसा मसीह केवल अल्लाह के पैगंबर और कलिमा हैं जिसे मर्यम की तरफ डाल दिया और उस की तरफ से रूह़ हैं।" (सूरतुन्निसा : 171).
तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें गुलू करने से रोका है इस डर से कि कहीं हमें भी वही चीज़ न पहुँच जाये जो उन्हें पहुँची थी, आप ने फरमाया : "तुम ग़ुलू करने से बचो, क्योंकि ग़ुलू ने तुम से पहले के लोगों को तबाह कर दिया।" इसे नसाई (5/268) ने रिवायत किया है, और अल्बानी ने सहीह सुनन नसाई (हदीस संख्या : 2863) में इसे सहीह कहा है।
चौथा : पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म दिन की बिद्अत को मनाना दूसरी बिद्अतों का तथा सुन्नत की उपेक्षा करके उन में व्यस्त होने का द्वार खोलता है, इसीलिए आप देखें गे कि बिद्अती लोग बिदअतों को मनाने में सक्रिय होते हैं, और सुन्नतों से आलस्य करते हैं और उन से घृणा (नफरत) करते हैं और सुन्नत के अनुयायियों से दुश्मनी करते हैं, यहाँ तक कि उन का समूचित धर्म अविष्कारित यादगारें और सालगिरहें मनाना बन कर रह गया है, और वे कई समूहों में विभाजित हो गये हैं और हर समूह (फिर्क़ा) अपने गुरूवों (इमामों) के जन्म दिनों को मनाता है, जैसे कि : अल बदवी, इब्ने अरबी, अद्दसूक़ी, और अश्शाज़ली का जन्म दिन, इस तरह वे एक जन्म दिन का जश्न मनाने से फारिग होते ही दूसरे जन्म दिन का उत्सव मनाने में लग जाते हैं, और इस का (दुष्ट) परिणाम यह सामने आया कि इन मृत लोगों और इन के अलावा अन्य लोगों के बारे में गुलू (अतिशयोक्ति) किया जाने लगा और अल्लाह के सिवाय इन लोगों को पुकारा जाने लगा, और उन का यह विश्वास और अक़ीदा बन गया कि वे लोग लाभ और हानि पहुंचाते हैं यहाँ तक ये लोग अल्लाह तआला के दीन से निकल गये और उन जाहिलियत के लोगों के धर्म की तरफ पलट गये जिन के बारे में अल्लाह तआला ने फरमाया है : "और ये लोग अल्लाह के सिवाय ऐसे लोगों की पूजा करते हैं जो न इन्हें हानि पहुँचा सकते हैं और न ही इन्हें लाभ पहुँचा सकते हैं और कहते हैं कि ये लोग अल्लाह के पास हमारे सिफारिशी हैं।" (सूरतु यूनुस : 18).
तथा अल्लाह तआला ने एक दूसरे स्थान पर फरमाया : "और जिन लोगों ने उस (अल्लाह) के सिवाय औलिया बना रखे हैं (और कहते हैं) कि हम उन की इबादत केवल इसलिए करते हैं कि ये (बुज़ुर्ग) हम को अल्लाह के क़रीब पहुँचा दें।" (सूरतुज़्ज़ुमर : 3)
पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म दिन का यादगार समारोह आयोजित करने वालों के सन्देहों का निवारण :
इस बिद्अत को मनाने के समर्थक लोग ऐसे सन्देहों का सहारा लेते हैं जो मकड़ी के जाले से भी अधिक कमज़ोर हैं, इन सन्देहों को निम्न बिन्दुओं में समेटा जा सकता है :
1- उन का यह दावा करना कि इस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का सम्मान है :
इस के उत्तर में हम कहें गे कि : आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का आदर और सम्मान (ताज़ीम) आप की ताबेदरी (अनुसरण), आप के आदेश का पालन और आप की निषिध की हुई चीज़ों से बचाव करने और अल्लाह के वास्ते आप से महब्बत करने में है, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का सम्मान बिद्आत व ख़ुराफात (नवाचारों और मिथ्याओं) तथा आप की शरीअत का उल्लंघन और अवहेलना करने के द्वारा नहीं होता, और आप के जन्म का यादगार उत्सव मनाना इसी घृणित और अवैध प्रकार से सम्बंधित है ; क्योंकि यह अवज्ञा और अवहेलना (नाफरमानी) है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सब से अधिक और टूट कर महब्बत करने वाले सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम हैं, जैसाकि उर्वा बिन मस्ऊद ने क़ुरैश से कहा था : "ऐ मेरी क़ौम के लोगो ! अल्लाह की क़सम मैं किस्रा और क़ैसर (फारिस एंव रूम के बादशाह) तथा अन्य बादशाहों के दरबारों में गया हूँ, पर मैं ने किसी बादशाह को नहीं देखा कि उस के मानने वाले उस की इस तरह ताज़ीम और सम्मान करते हों जिस तरह मुहम्मद के साथी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ताज़ीम और सम्मान करते हैं, अल्लाह की क़सम उन का सम्मान करते हुए वे लोग उन की तरफ निगाह भर कर देखते भी नहीं।" (सहीह बुखारी 3/178 हदीस संख्या : 2731, 2732, फत्हुल बारी 5/388).
लेकिन इस सम्मान और आदर के बावजूद उन्हों ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म दिवस को उत्सव और त्योहार का अवसर नहीं बनाया, यदि यह वैध और धर्म संगत (नेकी का काम) होता तो वे लोग इसे न छोड़ते।
2- इस बात से हुज्जत पकड़ना कि बहुत से देशों में अधिकांश लोगों का यही अमल है।
इस का उत्तर यह है कि : हुज्जत और प्रमाण उस चीज़ के अन्दर है जो रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से साबित (प्रमाणित) है, और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रमाणित (साबित) यह है कि आप ने सामान्य रूप से बिद्अतों (धर्म में नवाचार) से मना किया है, और यह भी उन्हीं (बिदअतों) में से एक है।
और लोगों का अमल अगर दलील के खिलाफ हो तो वह हुज्जत और तर्क नहीं बन सकता, भले ही अधिकतर लोग उसी के समर्थक हों, (जैसाकि अल्लाह तआला का फरमान है) :
"और अगर आप धरती पर बसने वालों की बहुमत की बात मानें गे तो वे आप को अल्लाह के रास्ते से भटका दें गे।" (सूरतुल अंआम : 116)
जब कि अल्लाह की प्रशंसा और गुणगान है कि हर ज़माने में ऐसे लोग निरन्तर मौजूद रहे हैं जो इस बिद्अत का खण्डन करते रहे हैं और इस की व्यर्थता को स्पष्ट करते रहे हैं, अत: हक़ (सच्चाई) स्पष्ट हो जाने के बाद जो इस बिद्अत को मनाने पर निरन्तर जमा रहा उस के अमल में कोई हुज्जत और तर्क नहीं है।
इस अवसर पर समारोह आयोजित करने और उत्सव मनाने का जिन लोगों ने खण्डन किया है उन में शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या अपनी किताब "इक़्तिज़ाउस्सिरातिल मुस्तक़ीम" में, इमाम शातिबी अपनी किताब "अल-एतिसाम" में और इब्नुल हाज्ज अपनी किताब "अल मद्ख़ल" में हैं, तथा शैख ताजुद्दीन अली बिन उमर अल्लखमी ने इस के खण्डन में अलग से एक किताब ही लिखी है, और शैख मुहम्मद बिन बशीर सहसवानी भारतीय ने अपनी किताब "सियानतुल इन्सान" में इस का खण्डन किया है, तथा सैयद मुहम्मद रशीद रज़ा ने इस बाबत एक विशिष्ट पत्रिका लिखी है, और शैख मुहम्मद बिन इब्राहीम आलुश्शैख ने भी इस के बारे में एक विशिष्ट पत्रिका लिखी है, तथा समाहतुश्शैख इब्ने बाज़ ने भी इस का खण्डन किया है, इन के अतिरिक्त अन्य लोग भी हैं जो हर साल इस बिद्अत के खण्डन में पत्रिकाओं और मैगज़ीनों के पन्नों में बराबर उस समय लिखते रहते हैं जिस समय इस बिद्अत को आयोजित किया जाता है।
3- वे लोग कहते हैं कि : मीलाद का समारोह आयोजित करने में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के यादगार को ज़िन्दा और ताज़ा करना है।
इस के उत्तर में हम कहेंगे कि : जब भी मुसलमान अज़ान व इक़ामत और खुत्बों (भाषणों) में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का नाम लेता है तो रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का स्मरण मुसलमान के साथ नवीन होता रहता है और वह मुसलमान के साथ सम्बंधित और जुड़ा हुआ रहता है, इसी तरह जब भी मुसलमान वुज़ू के बाद और नमाज़ों में शहादतैन को दोहरात है, और जब भी वह नमाज़ों में और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का नाम आने पर दुरूद पढ़ता है, तथा जब भी मुसलमान कोई अनिवार्य या ऐच्छिक (वाजिब या मुसतहब) नेक कार्य करता है जिसे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने धर्म संगत क़रार दिया है तो वह इस के द्वारा आप को याद करता है, और आप को भी उतना ही पुण्य और अज्र व सवाब पहुँचता है जितना कि अमल करने वाले को मिलता है . . . इस तरह मुसलमान सदैव रसूल के यादगार को नवीन और ताज़ा करता रहता है और अपने जीवन भर रात दिन अल्लाह तआला के बताये हुए तरीके़ के अनुसार आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सम्बंधित और जुड़ा हुआ रहता है, केवल मीलाद के दिन और ऐसी चीज़ के द्वारा नहीं जो बिद्अत और आप की सुन्न्त के विरूद्ध है, क्योंकि ऐसा करना तो रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से दूर और आप से अलग थलग (बरी) कर देता है।
वास्तविकता तो यह है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस तरह के अविष्कारित समारोह और स्मरण उत्सव से, उस आदर व सम्मान और ताज़ीम के द्वारा बेनियाज़ हैं जिसे अल्लाह तआला ने आप के लिए निर्धारित कर दिया है (धर्म संगत ठहराया है) जैसाकि अल्लाह तआला के इस फरमान में है : "और हम ने आप का ज़िक्र (चर्चा) ऊंचा कर दिया है।" (सूरतुश शर्ह : 4)
चुनाँचि अज़ान, इक़ामत और खुत्बा में जहाँ सर्व शक्तिमान अल्लाह का स्मरण किया जाता है वहीं उस के बाद ही रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म का भी स्मरण किया जाता है, और यह प्रतिष्ठा आप के आदर व सम्मान, महब्बत, और आप के ज़िक्र का नवीन करने और आप के अनुसरण पर प्रोत्साहित करने के लिए काफी है।
तथा यह बात भी विचार के योग्य है कि अल्लाह सुब्हानहु व तआला ने पवित्र क़ुरआन में रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म का उल्लेख और चर्चा नहीं किया है, बल्कि आप के सन्देष्टा बनाये जाने का उल्लेख और चर्चा किया है, अल्लाह तआला ने फरमाया : "अल्लाह तआला नें मोमिनों पर बड़ा उपकार किया है कि उन्हीं में से उन के मध्य एक पैग़म्बर भेजा जो उन पर अल्लाह तआला की आयतें तिलावत करता, उन्हें पाक करता और उन्हें किताब और हिक्मत की शिक्षा देता है, अगरचे वे इस से पहले स्पष्ट पथ-भ्रष्टता (गुमराही) में थे।" (सूरत आल इम्रान: 164)
तथा एक दूसरे स्थान पर फरमाया : "वही (अल्लाह) है जिस ने अनपढ़ों में उन्हीं में से एक रसूल भेजा।" (सूरतुल जुमा : 2)
4- कभी कभार वे कहते हैं कि : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म का स्मरण उत्सव मनाने का अविष्कार एक इन्साफ पसन्द विद्वान बादशाह ने किया है जिस का उद्देश्य अल्लाह का तक़र्रुब (निकटता) हासिल करना है !
इस का उत्तर यह है कि : बिद्अत को किसी भी व्यक्ति से स्वीकार नहीं किया जा सकता, और मक़्सद का अच्छा होना किसी बुरे काम को वैध नहीं ठहरा सकता है, और उस के विद्वान और इन्साफ पसन्द होने का मतलब यह नहीं होता है कि वह ग़लतियों से मासूम (पाक व पवित्र) था।
5- उन का यह भी कहना है कि : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म दिन के अवसर पर समारोह का आयोजन करना एक अच्छी बिद्अत है ; क्योंकि इस से नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अस्तित्व पर अल्लाह तआला का शुक्र अदा करने का प्रदर्शन होता है!
इसका उत्तर यह दिया जाये गा कि : बिद्अतों में से कोई भी चीज़ अच्छी नहीं है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है : "जिस ने हमारी इस शरीअत में कोई ऐसी चीज़ अविष्कार की जिस का उस से कोई सम्बंध नहीं है तो उसे रद्द (अस्वीकृत) कर दिया जायेगा।" (सहीह बुखारी 3/167 हदीस संख्या : 2967, फत्हुल बारी 5/ 355)
तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "हर बिद्अत गुमराही है।" (मुस्नद अहमद 4/126, तिर्मिज़ी हदीस संख्या : 2576)
इस हदीस में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हर बिद्अत को गुमराही कहा है, और यह कहता है कि : हर बिद्अत गुमराही नहीं है बल्कि कोई बिद्अत ऐसी भी है जो अच्छी है।
हाफिज इब्ने रजब अपनी किताब "शर्हुल अरबईन" (चालीस हदीसों की व्याख्या) में कहते हैं कि : (आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान : "हर बिद्अत गुमराही है।" जवामिउल कलिम में से है, उस से कोई चीज़ बाहर नहीं हो सकती है, तथा वह धर्म के मूल सिद्धान्तों में से एक महान सिद्धान्त है, तथा वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन : "जिस ने हमारी इस शरीअत में कोई ऐसी चीज़ अविष्कार की जिस का उस से कोई सम्बंध नही है तो उसे रद्द (अस्वीकृत) कर दिया जायेगा।" (सहीह बुखारी 3/167 हदीस संख्या : 2967, फत्हुल बारी 5/355) के समान है, अत: जिस ने भी कोई नई चीज़ निकाली (ईजाद की) और उसे धर्म से सम्बंधित कर दिया और उस के लिए धर्म में कोई असल (सिद्धान्त) नहीं है जिस की तरफ उसे लौटाये जा सके (यानी उस का आधार बन सके) तो वह गुमराही और पथ भ्रष्टता है और धर्म उस से बरी और अलग थलग है, तथा इस में अक़ीदे (विश्वास) के मसाईल, या ज़ाहिरी और बातिनी कथन या कर्म सभी बराबर हैं।) जमिउल उलूम वल हिकम पृ. 233 से समाप्त हुआ।
इन लोगों के पास इस बात पर कि कोई बिद्अत अच्छी भी है, इस के सिवाय कोई और हुज्जत नहीं है कि उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने तरावीह की नमाज़ के बारे में फरमाया : "यह कितनी अच्छी बिदअत है।" (सहीह बुखारी 2/252 हदीस संख्या : 2010 तालीक़ के साथ, फतहुल बारी 4/ 294).
तथा वे लोग यह भी कहते हैं कि : कुछ ऐसी चीज़ें नई अविष्कार की गई हैं जिन का सलफ सालिहीन ने खण्डन नहीं किया है जैसे कि : क़ुरआन करीम को एक पुस्तक में एकत्र (संग्रह) करना, तथा हदीस का लेखन और संकलन।
इस का उत्तर यह है कि इन चीज़ों की शरीअत में एक असल और आधार मौजूद है, इसलिए ये नई अविष्कार नहीं की गई हैं (अर्थात इन्हें बिदअत नहीं कहा जायेगा)।
तथा उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के कथन कि : (क्या ही अच्छी बिदअत है) का अभिप्राय : भाषाई अर्थ में बिद्अत (नवाचार) है, शरई अर्थ में बिद्अत (नवाचार) नहीं है, जिस चीज़ की शरीअत में कोई असल और आधार हो जिस की तरफ वह पलटती हो जब उस के बारे में यह कहा जाये कि : वह बिद्अत है, तो वह भाषा (शब्दकोष) से सम्बंधित बिद्अत है शरीअत की शब्दावली में बिद्अत नहीं है, क्योंकि शरीअत के अन्दर बिद्अत उसे कहते हैं जिस का शरीअत में कोई आधार और असल न हो जिस की तरफ वह पलटता हो।
तथा क़ुरआन को एक किताब में संग्रह करने का शरीअत में आधार और असल मौजूद है, क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम क़ुरआन को लिखने का आदेश देते थे, किन्तु वह अलग अलग (छिटपुट) लिखा हुआ था, तो सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने उसे उस की सुरक्षा के लिए एक किताब में एकत्र (संग्रह) कर दिया।
तथा तरावीह की नमाज़ को नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने सहाबा को कुछ रातें पढ़ाई हैं, फिर आप ने अन्त में इस डर से उसे छोड़ दिया कि कहीं उन पर अनिवार्य न कर दी जाये, लेकिन सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जीवन काल में और आप की मृत्यु के बाद उसे अलग अलग पढ़ते रहे, यहाँ तक कि उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन्हें एक इमाम के पीछे एकत्र कर दिया जिस तरह कि वे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पीछे (तरावीह की नमाज़ पढ़ते) थे, और यह धर्म में एक बिद्अत (नयी पैदा की गई चीज़) नहीं है।
तथा हदीस के लिखने का भी शरीअत में एक असल और आधार मौजूद है, चुनाँचि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने कुछ सहाबा के हदीस को लिखने की मांग करने पर कुछ हदीसों को लिखने का आदेश दिया, तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ज़माने में उस का सामान्य रूप से लिखना इस डर से निषिद्ध था कि कहीं कु़र्आन के साथ ऐसी चीज़ न मिल जाये जो उस का हिस्सा नहीं है, लेकिन जब आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु हो गई तो यह निषेद्ध समाप्त हो गया, क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु से पहले ही क़ुर्आन सम्पूर्ण हो गया था और उसे नियंत्रणित कर लिया गया था, फिर इस के बाद मुसलमानों ने सुन्नत के नष्ट होने के डर से उस का संकलन किया, अत: अल्लाह तआला उन्हें इस्लाम और मुसलमानों की तरफ से अच्छा बदला दे कि उन्हों ने अपने पालनहार की किताब और अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत को नष्ट होने और छेड़छाड़ और खुर्द बुर्द करने वालों के छेड़छाड़ से सुरक्षित कर दिया।
तथा उन से यह भी कहा जायेगा कि : तुम्हारे भ्रम के अनुसार इस शुक्र को अदा करने में छठी शताब्दी हिजरी तक क्यों विलंब किया गया, चुनांचि सहाबा, ताबेईन और उनके बाद आने वाले लोगों ने जो कि सर्वश्रेष्ठ ज़माने के लोग हैं, इस मीलाद समारोह का आयोजन नहीं किया, जबकि वे लोग भलाई के काम पर और शुक्र की अदायगी के बड़े इच्छुक और लालायित थे और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अत्यन्त महब्बत करने वाले थे, तो क्या आप यह कहना चाहते हैं कि जिन्हों ने मीलाद की बिद्अत ईजाद की है ये उन (सहाबा व ताबईन) से अधिक हिदायत याफता और उन से अधिक अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल का शुक्र अदा करने वाले थे ? कभी नहीं और कदापि नहीं।
6- उन का यह कथन भी है कि : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म दिन का स्मरणोत्सव मनाना आप की महब्बत का सूचक है, इस प्रकार यह आप की महब्बत का एक प्रदर्शन है और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म की महब्बत का प्रदर्शन करना वैध (धर्म संगत) है !
इसके उत्तर में हम कहें गे कि : इस में कोई शक नहीं कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की महब्बत हर मुसलमान पर उस की जान, बाल-बच्चों, मात-पिता और समस्त लोगों की महब्बत से कहीं बढ़कर अनिवार्य है, लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि हम इस में कोई ऐसी चीज़ गढ़ लें जो हमारे लिए वैध नहीं है, बल्कि आप की महब्बत का तक़ाज़ा यह है कि आप का आज्ञा पालन और अनुसरण किया जाए, क्योंकि यह आप की महब्बत का सबसे महान प्रदर्शन है, जैसाकि कहा गया है :
अगर तुम्हारी महब्बत सच्ची होती, तो तुम अवश्य उस की पैरवी करते।
क्योंकि महब्बत करने वाला अपने महबूब की पैरवी करने वाला होता है।
अत: आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की महब्बत वास्तव में आप की सुन्नत को ज़िन्दा करना, उसे मज़बूती से थामे रहना, और उस के विरूद्ध सभी बातों और कामों से दूर रहना है, और इस में कोई सन्देह नहीं कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत के खिलाफ हर चीज़ एक घृणित बिद्अत और प्रत्यक्ष अवज्ञा है, और इसी में से आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म दिवस का यादगार मनाना भी है, क्योंकि यह बिद्अतों में से है।
और आदमी की नीयत का अच्छा होना दीन में बिद्अत ईजाद करने को वैध नहीं ठहरा सकता ; क्योंकि दीन दो सिद्धान्तों पर आघारित है : इख्लास और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पैरवी। अल्लाह तआला का फरमान है :
"सुनो! जिस ने अपने चेहरे को अल्लाह के सामने झुका दिया (आज्ञा पालन किया) और वह नेक कार्य करने वाला (भी) है, तो उसी के लिए उस के रब के पास अज्र (पुण्य) है, और उन पर न कोई डर होगा और न वे लोग शोक ग्रस्त हों गे।" (सूरतुल बक़रा : 112)
चेहरे को झुकाने का मतलब अल्लाह के लिए इख्लास अपनाना, और एहसान का मतलब रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पैरवी और आप की सुन्नत का इत्तिबा करना है।
7- तथा उन के सन्देहों में से यह भी है कि वे कहते हैं कि : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म दिन का यादगार मनाने और इस अवसर पर आप की जीवनी (सीरत) पढ़ने में लोगों को आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अनुसरण करने और आप का आदर्श अपनाने पर प्रोत्साहित करना है !
इस के उत्तर में हम उन से कहें गे कि : पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सीरत (जीवनी) को पढ़ना, आप का अनुसरण करना और आप के आदर्श को अपनाना मुसलमान के लिए हर समय पूरे वर्ष और जीवन भर आवश्यक है, किन्तु उस के लिए बिना किसी प्रमाण के एक दिन विशिष्ट कर लेना बिद्अत है और "हर बिद्अत गुमराही है।" (मुसनद अहमद 4/1164, तिर्मिज़ी हदीस संख्या : 2676).
तथा बिदअत मात्र बुराई और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से दूरी ही को जन्म देती है।
सारांश यह है कि : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल के जन्म दिवस का स्मरणोत्सव मनाने की सभी क़िस्में और शक्लें एक घृणित बिद्अत हैं, मुसलमानों पर अनिवार्य है कि वे इस बिदअत से और इस के अलावा अन्य बिद्अतों से लोगों को रोकें, और सुन्नतों को जीवित करने और उन पर दृढ़ता से जम जाने में व्यस्त हों, तथा इस बिद्अत का प्रसार व प्रचार करने और इस का समर्थन करने वालों से धोखा न खायें ; क्योंकि ये लोग सुन्नतों को ज़िन्दा करने से अधिक ध्यान बिद्अतों को ज़िन्दा करने पर देते हैं, बल्कि कभी-कभार सुन्नतों पर बिल्कुल ही ध्यान नहीं देते, और जिस आदमी का यह हाल हो उस की तक्लीद करना और उसके पीछे चलना जाईज़ नहीं है, भले ही इस वर्ग के लोग ही अधिक संख्या और बहुमत में हों, बल्कि केवल सुन्नत के मार्ग पर चलने वाले सलफ सालेहीन (इस्लाम के प्राथमिक शताब्दियों के सदाचारी पूर्वज) और उन का अनुसरण करने वालों की पैरवी की जाये गी, चाहे उन की संख्या थोड़ी ही क्यों न हो ; क्योंकि हक़ की पहचान लोगों के द्वारा नहीं होती है बल्कि लोग हक़ के द्वारा पहचाने जाते हैं।
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है :
"तुम में से जो आदमी मेरे बाद ज़िन्दा रहेगा वह बहुत अधिक इख्तिलाफ (मतभेद) देखे गा, अत: तुम मेरी सुन्नत और मेरे बाद हिदायत याफ्ता (पथप्रदर्शित) ख़ुलफा-ए-राशिदीन की सुन्नत को दृढ़ता से थाम लो और उसे दांतों से जकड़ लो। तथा धर्म में नयी ईजाद कर ली गई चीज़ों (यानी बिद्अतों) से बचो, क्योंकि हर बिद्अत गुमराही (पथ भ्रष्टता) है।" (मुसनद अहमद 4/126, तिर्मिज़ी हदीस संख्या : 2676)
इस हदीस में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमारे लिए यह स्पष्ट कर दिया है कि हम मतभेद के समय किस की बात मानें और परैवी करें, तथा यह भी स्पष्ट कर दिया कि सुन्नत के खिलाफ हर काम और कथन बिद्अत है और हर बिद्अत गुमराही है।
और जब हम नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म दिवस का जश्न मनाने का विश्लेशण करते हैं तो हम रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत में, या खुलफाये राशिदीन की सुन्नत में कोई आधार नहीं पाते हैं, इसलिए वह नई अविष्कार कर ली गई चीज़ों में से और गुमराह करने वाली बिदअतों में से है, और यह असल (सिद्धांत) जिस पर यह हदीस आधारित है, इस पर अल्लाह तआला का यह फरमान दलालत करता है : "यदि तुम किसी चीज़ के बारे में मतभेद कर बैठो तो उसे अल्लाह और रसूल की तरफ लौटाओ, यदि तुम अल्लाह तआला और आखिरत के दिन पर ईमान रखते हो, यह बेहतर और परिणाम के एतिबार से बहुत अच्छा है।" (सूरतुन्निसा : 59).
अल्लाह की तरफ लौटाने का मतलब उस की पवित्र किताब की ओर लौटाना, और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की तरफ लौटाने का मतलब आप की मृत्यु के बाद आप की सुन्नत की तरफ लौटाना है, अत: मतभेद उत्पन्न होने के समय किताब और सुन्नत ही दो सन्दर्भ हैं, तो बतलायें कि किताब और सुन्नत में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्म दिन का उत्सव मनाने की वैधता का प्रमाण कहाँ है ? इसलिए इस को मनाने वाले या इसे अच्छा समझने वाले पर अनिवार्य है कि इस से और इस के अलावा अन्य बिदअतों से अल्लाह के सामने तौबा (पश्चाताप) करे, क्योंकि सत्य के खोजी और हक़ के मतलाशी मोमिन का यही रवैया होता है, किन्तु जो व्यक्ति हुज्जत क़ायम हो जाने के बाद हठ (जिद्दीपन) और अभिमान का रवैया अपनाता है तो उस का हिसाब उस के प्रभु के पास होगा।
किताब हुक़ूक़ुन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बैनल इजलाल वल इख्लाल पृ. 139.
शैख डॉक्टर सालेह बिन फौज़ान अल फौज़ान
सऊदी अरब में वरिष्ठ विद्वानों की समिति के सदस्य