अरफ़ा के दिन की फज़ीलतें
अरफा के दिन की फज़ीलतें क्या हैं?
हर प्रकार की प्रशंसा व गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
अरफा के दिन की फज़ीलतों में से कुछ यह हैं :
1 – यह इस्लाम धर्म को मुकम्मल करने और नेमत को पूरा करने का दिन है।
सहीहैन (सहीह बुखारी और सहीह मुस्लिम) में उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि एक यहूदी आदमी ने उनसे कहा : ऐ अमीरुल मोमिनीन, आप लोग अपनी किताब (क़ुरआन) में एक आयत पढते हैं, यदि वह आयत हम यहूदियों पर उतरी होती तो हम उस दिन को ईद (त्योहार) का दिन बना लेते। उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने उससे पूछा कि वह कोन सी आयत है? य़हूदी ने बताया कि वह आयत यह है :
(الیوم اکملت لکم دینکم واتممت علیکم نعمتی و رضیت لکم الاسلام دینا) (المائدۃ :۳)
आज मैं ने तुम्हारे लिए तुम्हारे धर्म को मुकम्मल कर दिया। और तुम पर अपनी नेमतें पूरी कर दीं। और तुम्हारे लिए इस्लाम को घर्म के रूप में पसन्द कर लिया।‘’ (तूरतुल मायदाः 3)
उमर रज़ियल्लाहु अन्हु कहने लगेः हमें उस दिन और जगह का ज्ञान है जब वह आयत नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर नाज़िल (उतरी) हुई। वह शुक्रवार का दिन था और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अरफा मे ठहरे थे।
2 – यह (अरफात में) ठहरने वालों के लिए ईद का दिन हैः
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘’अरफा का दिन, क़ुर्बानी का दिन (10 ज़ुल-हिज्जा) और तशरीक़ के दिन (11, 12, 13 ज़ुल-हिज्जा) हम इस्लाम के अनुयायियों (मुसलमानों) के लिए ईद के दिन हैं, तथा वे खाने और पीने के दिन हैं।‘’ (इसे अह्ले सुनन ने रिवायत किया है)।
तथा उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : यह - अर्थात आयत ‘’अल-यौमा अकमल्तो’’ - शुक्रवार और अरफा के दिन अवतरित हुई, और अल्लाह का शुक्र है कि यह दोनों दिन हमारे लिए ईद के दिन हैं।‘’
3 – यह वह दिन है जिसकी अल्लाह ने क़सम खाई हैः
और महान अस्तित्व महान ही की क़सम खाता है। अरफा के दिन को अल्लाह के इस फरमान में ‘’मशहूद दिन’’ कहा गया है : " وشاهد ومشهود " البروج :3 अर्थात : क़सम है हाज़िर होने वाले और हाज़िर किये गये दिन की। (सूरतुल बुरूजः 3)
अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘’वादा किए गए दिन से अभिप्राय क़ियामत (परलोक) का दिन है, और हाज़िर किए गऐ दिन से अभिप्राय अरफा का दिन है और हाज़िर होने वाले दिन से अभिप्राय जुमा का दिन है।‘’ इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है और अल्बानी ने हसन क़रार दिया है।
और यही दिन ‘’अल-वत्र’’ है जिस की अल्लाह ने अपने इस फरमान में क़सम खाई है :(والشفع والوتر) الفجر :3 अर्थात : क़सम है जुफ्त और त़ाक़ (युग्म और अयुग्म) की। (सूरतुल फज्रः 3)
इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहते हैं : जुफ्त (युग्म) से अभिप्राय क़ुर्बानी का दिन है और ताक़ (अयुग्म) से अभिप्राय अरफा का दिन है। यही कथन इक्रमा और ज़ह़्ह़ाक का भी है।
4 –इस दिन का रोज़ा रखना दो साल के पापों का कफ्फारा (प्रायश्चित) है।
अबू क़तादा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि : अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अरफा के दिन के रोज़े के बारे में प्रश्न किया गया तो आप ने फरमाया : ‘’यह पिछले एक वर्ष और आने वाले एक वर्ष के पापों का कफ्फारा (प्रायश्चित) है।‘’ इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।
परंतु यह रोज़ा हाजी के अलावा लोगों के लिए मुस्तहब है। हाजी के लिए इस दिन का रोज़ा मसनून नहीं है। क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस दिन का रोज़ा नहीं रखा था। तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित है की आप ने अरफा में अरफा के दिन का रोज़ा रखने से मना किया है।
5 – यही वह दिन है जिसमें अल्लाह ने आदम की संतान से प्रतिज्ञा लिया था।
इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : अल्लाह ने आदम की संतान से नोमान नामी स्थान – अर्थात अरफा - में प्रतिज्ञा लिया। आदम की पीठ से उनकी सब संतान को निकाला और उन्हें अपने सामने ज़र्रों की तरह फैला कर उन से पूछा : ‘’क्या मैं तुम्हरा रब नहीं हूँ ? सब ने कहा, क्यों नहीं। हम सब (तेरे रब होने की) गवाही देते हैं। ( ऐसा इसलिए किया) ताकि तुम लोग क़ियामत के दिन यह न कहने लगो कि हम तो बस अनजान थे। या यूं कहो कि पहले पहले शिर्क तो हमारे बाप-दादा ने किया, हम तो उनके बाद उनकी सन्तति मे हुए, तो क्या तू इन ग़लत राह वालों के कार्य पर हमको विनष्ट करेगा?’’ (अलआराफ : 172-173) इसे अहमद ने रिवायत किया है और अल्बानी ने इसे सहीह कहा है। इस तरह यह कितना ही महान दिन है और यह कितनी ही महान प्रतिज्ञा है।
6 – यह पापों के क्षमा, नरक से मुक्ति और अरफात के मैदान में ठहरनेवालों पर गर्व का दिन हैः
सहीह मुस्लिम में आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘‘अल्लाह तआला अरफा के दिन से अधिक किसी दूसरे दिन बन्दों को आग से मुक्त् नहीं करता। निःसंदेह अल्लाह समीप होता है और स्वर्गदूतों के समक्ष उन पर गर्व करता है और कहता है : ये लोग क्या चाहते हैं?’’
इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : ‘’अल्लाह तआला अरफा की शाम अरफा में ठहरनेवालों पर गर्व करते हुए कहता है : मेरे इन बन्दों को देखो, ये लौग मेरे पास धूल मिट्टी से अटे हुए आए हैं।‘’ इसे अहमद ने रिवायत किया है और अल्बानी ने सहीह कहा है।
और अल्लाह तआला ही सबसे अधिक ज्ञान रखता है।
शैख मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद