الاثنين، 5 أبريل 2010

स्वास्थ्य बीमा में भाग लेने का हुक्म

स्वास्थ्य बीमा में भाग लेने का हुक्म

प्रश्नः

हम एक चिकित्सा संस्थान हैं, हम अपने साथ अनुबंधित कंपनियों के बीमारों के लिए इलाज सेवायें देने के मैदान में काम करते हैं। कंपनियों के साथ अनुबंध की शर्तों में से एक यह है कि : रोगी हर बार हमारे पास आने (प्रत्येक विज़िट) के बदले एक निश्चित राशि का भुगतान करेगा, जो हमारे उस की कंपनी से कुल मांग की राशि से कट जायेगा। प्रश्न यह है कि : क्या शरीअत के दृष्टि कोण से हमारे लिए यह जाइज़ है कि हम उस राशि को जिसे रोगी भुगतान करता है समाप्त कर दें और उसे हम स्वयं उस की ओर से सहन करें, ताकि हम रोगियों को अपनी तरफ आकर्षित कर सकें, और वे किसी अन्य सेवा प्रदाता पर हमें प्राथमिकता दें ? ज्ञात रहे कि ये कंपनियाँ बीमा की कंपनियाँ है जो उन कंपनियों के कर्मचारियों को चिकित्सा सेवायें प्रदान करने के मैदान में काम करती हैं जो इन के साथ और हमारे अलावा अन्य समान चिकित्सा संस्थाओं के साथ ठेका किये होती हैं।

उत्तरः

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।

वाणिज्यिक बीमा के सभी अनुबंध (मामले) जुआ पर आधारित हैं, और उन में अज्ञानता और जोखिम पाया जाता है, इसी कारण अधिकांश समकालीन विद्वान और धर्मशास्त्र समितियाँ उस के हराम होने की ओर गई हैं, और इस से केवल थोड़े ही लोग ऐसे हैं जो इस के विरूद्ध विचार रखते हैं, और उन्हीं लोगों का मत सत्य है जो इस के हराम होने की ओर गये हैं ; क्योंकि उन के प्रमाण स्पष्ट और ठोस हैं।

यह व्यावसायिक बीमा के बारे में है, जिसे दुनिया में अक्सर लोग करते हैं, वे दुर्घटनाओं, या इलाज (चिकित्सा उपचार), दीयत (खून का पैसा), या सामानों या वाहनों इत्यादि के बीमा के लागत को कवर करने के लिए बीमा कंपनियों के साथ समझौता करते हैं। तथा उन कंपनियों के साथ समझौता करने वाला उन की सरकारें, या संस्थायें, या कारखाने हो सकते हैं।

इन मामलों के हराम होने का कारण अत्यन्त स्पष्ट है, होता यह है कि भागीदार व्यक्ति दुर्घटनाओं या इलाज के बीमा के लिए क़िस्तों का भुगतान करता है, फिर वह बीमार नहीं होता है, और न ही उस के साथ कोई दुर्घटना घटती है, अत: उस ने जो पैसे बीमा कंपनियों को भुगतान किये होते हैं वे नष्ट (व्यर्थ) हो जाते हैं, इस के विपरीत कभी वह एक या दो क़िस्तें भुगतान करता है फिर बीमार हो जाता है या उस के साथ कोई दुर्घटना घट जाती है तो वे उसे उस के कई गुना पैसे भुगतान करते हैं जितना कि वे उस से लिए होते हैं, और यही जुआ, अज्ञानता और जोखिम है।

और आप लोग जो अपनी संस्था में करते हैं कि स्वयं भागीदार से लागत का एक भाग वसूल करें या सिरे से उस से कुछ भी न लें : ये सब निषेद्ध के हुक्म को कुछ भी प्रभावित नहीं करता।

स्थायी समिति के विद्वानों से प्रश्न किया गया कि :

स्वास्थ्य बीमा के बारे में शरीअत का क्या हुक्म है, इस प्रकार कि बीमा कराने वाला बीमा कंपनी को प्रति माह या सालाना एक राशि भुगतान करता है, जिस के बदले में कंपनी बीमा कराने वाले व्यक्ति का आवश्यकता पड़ने पर अपने खर्च पर इलाज करवाती है, यह ज्ञात रहे कि यदि बीमा कराने वाले के इलाज की आवश्यकता नहीं पड़ती है तो उस ने जो कुछ बीमा की राशि भुगतान की है उसे (कंपनी से) वापस नहीं ले सकता है।

ते उन्हों ने उत्तर दिया :

"यदि स्वास्थ्य बीमा की वस्तुस्थिति वही है जो आप ने उल्लेख की है तो यह जाइज़ नहीं है ; क्योंकि इस में धोखा और जोखिम पाया जाता है, इसलिए कि हो सकता है कि अपनी स्वास्थ्य का बीमा कराने वाला आदमी बहुत अधिक बीमार हो और उस ने कंपनी को जो राशि भुगतान की है उस से अधिक का इलाज कराये, और अतिरिक्त राशि के भुगतान का वह बाध्य न हो, और यह भी संभव है कि वह उदाहरण के तौर पर एक या दो महीना बीमार ही न हो, और उस ने कंपनी को जो भुगतान किए हैं उसे वापस न लौटाया जाये, और जो भी इस तरह का है : वह जुआ का एक प्रकार (रूप) है।" (समिति की बात समाप्त हुई)

शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़, शैख अब्दुल्लाह बिन ग़ुदैयान, शैख अब्दुल्लाह बिन क़ऊद।

"फतावा स्थायी समिति" (15 / 296).

तथा स्थायी समिति के विद्वानों से प्रश्न किया गया कि :

हम अमेरिका में छात्र के रूप में रहते हैं, दूतावास हमारे लिए स्वास्थ्य उपचार की सुविधा उपलब्ध कराता है, और वह इस प्रकार कि प्रत्येक छात्र के लिए बीमा (इन्शोरेंस) का प्रबंध करता है, अर्थात् यह कि : वह बीमा कंपनी को प्रत्येक छात्र की तरफ से एक राशि का भुगतान करता है, इस तरह हर छात्र के पास एक स्वास्थ्य बीमा कार्ड होता है, अत: इस चीज़ के बार में आप का क्या विचार है, यह जानते हुए कि इलाज बहुत मंहगा है ?

तो उन्हों ने उत्तर दिया कि :

"स्वास्थ्य बीमा, वाणिज्यक बीमा में से है, और वह हराम है।" (समिति की बात समाप्त हुई).

शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़, शैख अब्दुर्रज़्ज़ाक़ अफीफी, शैख अब्दुल्लाह बिन ग़ुदैयान।

"फतावा स्थायी समिति" (15/298 - 299)

इसी तरह उन्हों ने स्वास्थ्य सेवाओं के लिए "रामतान" की प्रणाली के बारे में, तथा "अस्सुमैरी अस्पताल" की प्रणाली (सिस्टम) के बारे में बिल्कुल यही उत्तर दिया, तथा उन संस्थाओं, कंपनियों और अस्पतालों में भिन्न और अनेक तरीक़े प्रचलित हैं, लेकिन उन सब का हुक्म एक है ; क्योंकि उन सब के सिस्टम उन के अनुबंधों के जुआ, अज्ञानता (अस्पष्टता) और जोखिम पर आधारित होने पर सहमत हैं।

देखिए : "फतावा स्थायी समिति" (15/303 - 307) और (15/317 - 321).

और अल्लाह तआला सब से श्रेष्ठ ज्ञान रखता है।

इस्लाम प्रश्न और उत्तर

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