अत्तआउनिय्या बीमा कंपनी के शेयर खरीदने का हुक्म
प्रश्नः
अत्तआउनिय्या नामी बीमा कंपनी के शेयरों को खरीदने का क्या हुक्म है जिस ने सऊदी शेयर बाज़ार में अपने शेयरों की पेशकश की है ?
उत्तरः
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है, तथा अल्लाह के पैगंबर पर दया और शान्ति अवतरित हो, अल्लाह की प्रशंसा और गुणगान के बाद :
इस के शरई हुक्म का हम निम्नलिखित बिन्दुओं में खुलासा कर रहे हैं :
1- बीमा का शरई हुक्म :
समकालीन विद्वानों की बहुमत इस बात की ओर गई है कि वाणिज्यिक बीमा हराम और सहकारी बीमा जाइज़ है, और यही दृष्टि कोण सामूहिक फत्वा जारी करने की अधिकांश कौंसिलों के द्वारा अपनाया गया है, जैसे कि सऊदी अरब के वरिष्ठ विद्वानों की परिषद, तथा फत्वा जारी करने की स्थायी समिति, मक्का मुकर्रमा में मुस्लिम विश्व लीग के अधीन इस्लामी फिक़्ह अकादमी, जिद्दा में इस्लामी सम्मेलन के संगठन के अधीन अन्तर्राष्ट्रीय इस्लामी फिक़्ह परिषद, और इन के अलावा अन्य ; क्योंकि वाणिज्यिक बीमा धोखा, अस्पष्टता, जुआ और अवैध रूप से लोगों का धन खाने पर आधारित है, सहकारी बीमा के विपरीत जो कि पारस्परिक सहयोग और एकजुटता (सामाजिक समता वाद) पर आधारित है। आज बीमा उद्योग की वास्तविकता को निष्पक्षता और इंसाफ के दृष्टि से देखने वाले को अच्छी तरह पता चल जायेगा कि इस कथन (दृष्टि कोण) में कितनी मध्यस्थता और सन्तुलन है, और यह बिना किसी छति या गबन के लोगों की आवश्यकतायें पूरी करने और उन के हितों को प्राप्त करने में इस्लामी धर्म शास्त्र के उद्देश्यों के कितना अनुरूप है। और बीमा के आँकड़े इस बात के सब से स्पष्ट साक्षी और गवाह हैं, वाणिज्यिक बीमा व्यवस्था में बीमा कंपनियों के पास भारी मात्रा में धन जमा हो जाते हैं जबकि इस के बदले में वे जो मुआवज़े देती हैं वे प्राप्त किये गये मुनाफे की तुलना में बहुत ही कम होते हैं, जिस के परिणाम स्वरूप अमीर अल्पसंख्यक बीमा के लाभ और उस की सेवाओं के एक एकाधिकार बन जाते हैं, जबकि गरीब बहुमत इन से वंचित रहती है क्योंकि वे बीमा की क़िस्तों को उठाने में असमर्थ होते हैं। इन कंपनियों ने लोगों को इस तरह भ्रम में डाल रखा है कि खतरों और जोखिम को तोड़ने के लिए इस के अलावा कोई रास्ता नहीं है, लेकिन सहकारी बीमा के अनुभवों ने इसे गलत साबित कर दिया है जो कि कई विकसित देशों में लागू किये गये तो बीमा के लक्ष्यों को प्राप्त करने में वाणिज्यिक बीमा कपंनियों से अधिक सफल साबित हुए।
2- वाणिज्यिक बीमा और सहकारी बीमा के बीच अन्तर :
वाणिज्यिक बीमा में, बीमा का प्रशासन और प्रबंध बीमा प्राप्तियों से अलग एक स्वतन्त्र कंपनी करती है, और यह कंपनी आवश्यकता पड़ने की स्थिति में बीमा राशि के भुगतान की प्रतिबद्धता के बदले में बीमा की सभी क़िस्तों का हक़दार होती है, और बीमा की क़िस्तों की बढ़ती से उस के पास जो कुछ बच जाता है उसे बीमा कराने वालों पर वापस नहीं लौटाती है, इसलिए कि यह उसे ससहमत मुआवज़े के भुगतान की प्रतिबद्धता के मुक़ाबिले में एक बदला समझती है, और अगर प्राप्त क़िस्तें सभी मुआवज़ों के भुगतान के लिए पर्याप्त नहीं होती हैं तो उस के लिए बीमा कराने वालों से बीमा की अतिरिक्त क़िस्तों की मांग करने का अधिकार नहीं होता है। और यही अस्पष्टता और धोखे का व्यापार करना है जो इस्लाम में निषिद्ध है, तथा अवैध ढंग से लोगों के धन को खाना है।
जबकि सहकारी बीमा में एक जैसे खतरे से पीड़ित कुछ लोग जमा होते हैं, और उन में से हर एक व्यक्ति एक निर्धारित योगदान (राशि का भुगतान) करता है, और ये सभी योगदान (राशियाँ) छति ग्रस्त होने वाले व्यक्ति को मुआवज़ा देने के लिए विशिष्ट कर दी जाती हैं, यदि योगदान की राशि मुआवज़ा के भुगतान से बढ़ जाती है तो सदस्यों को उसे वापस लौटाने का अधिकार होता है, और यदि कम पड़ जाती है तो कमी को कवर करने के लिए सदस्यों से अतिरिक्त योगदान की मांग की जाती है, या कमी के अनुपात में मुआवज़े के दर में कमी कर दी जाती है।
इस में कोई बाधा नहीं है कि सहकारी बीमा का प्रशासन, बीमा कराने वालों से अलग एक स्वतन्त्र संस्था संभाले, और वह बीमा चलाने के बदले में कमीशन या मज़दूरी वसूल करे, इसी तरह इस में भी कोई मनाही नहीं है कि वह निवेश में उन का एजंट होने के रूप में बीमा के धन के निवेश से प्राप्त होने वाले मुनाफे से एक हिस्सा ले।
इस प्रकार यह बात स्पष्ट है कि दोनों प्रकार में बीमा कंपनी का, बीमा धारकों से अलग एक स्वतन्त्र अस्तित्व हो सकता है, तथा वह दोनों प्रकार में एक लाभ वाली कंपनी हो सकती है - अर्थात जिस का उद्देश्य लाभ अर्जित करना हो -, और दोनों प्रकार की बीमा कपंनियों में दो बुनियादी चीज़ों में अन्तर स्पष्ट हो जाता है:
पहला अन्तर : वाणिज्यिक बीमा में बीमा कंपनी और बीमा उपभोक्ताओं के बीच एक संविदात्मक प्रतिबद्धता होती है, क्योंकि बीमा कंपनी बीमा उपभोक्ताओं को मुआवज़ा देने के लिए प्रतिबद्ध होती है, और इस के बदले में भुगतान की गई सभी क़िस्तों की हक़दार होती है। जबकि सहकारी बीमा में इस प्रतिबद्धता के लिए कोई जगह नहीं है, क्योंकि उपलब्ध क़िस्तों से ही मुआवज़े (छतिपूर्ति) का भुगतान किया जाता है, अगर उपलब्ध क़िस्तें सभी मुआवज़े की पूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं हैं तो अन्तर की पूर्ति के लिए सदस्यों से उन के योगदान को बढ़ाने की मांग की जायेगी, अन्यथा उपलब्ध राशि के अनुसार मुआवज़े का भुगतान आंशिक रूप से किया जाये गा।
दूसरा अन्तर : सहकारी बीमा का लक्ष्य, बीमा कराने वालों के द्वारा भुगतान की गई क़िस्तों और कंपनी के द्वारा उन्हें भुगतान किये गये नुक़सान के मुआवज़े के बीच अन्तर से लाभ उठाना नहीं होता है, बल्कि अगर नुक़सान की भरपाई के लिए भुगतान किए गए मुआवज़े से क़िस्तों की राशि में कुछ वृद्धि होती है तो वृद्धि की राशि बीमा कराने वालों को वापस लौटा दी जाती है। इस के विपरीत, वाणिज्यिक बीमा के मामले में बीमा के ग्राहकों के लिए मुआवज़े की प्रतिबद्धता के बदले में वृद्धि की राशि का हक़दार बीमा की कंपनी होती है।
3- अत्तआउनिय्या बीमा कंपनी में शेयर खरीदने का हुक्म :
राष्ट्रीय सहकारी बीमा कंपनी के पिछले पाँच वर्षों के वित्तीय विवरण के अध्ययन के माध्यम से यह स्पष्ट है कि इस कंपनी में शेयर खरीदना जाइज़ नहीं है, इस के निम्नलिखित कारण हैं:
प्रथम : इस कंपनी में बीमा का अनुबंध वाणिज्यिक बीमा का है सहकारी बीमा का नहीं है :
बावजूद इस के कि कंपनी ने शेयर धारकों के वित्तीय केन्द्र को बीमा की गतिविधियों के वित्तीय केन्द्र से अलग स्थापित किया है -जैसा कि सहकारी बीमा में प्रचलित है- किन्तु कंपनी जो बीमा प्रणाली व्यवहार में लाती है वह व्यावसायिक बीमा से हट कर नहीं है, जबकि कंपनी का नाम इस के विपरीत संकेत देता है, यह तथ्य निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट हो कर सामने आता है :
(क) कंपनी के संविधान में स्पष्ट रूप से वर्णन किया गया है बीमा की वृद्धि राशि जो कि बीमा की क़िस्तों के कुल योग और भुगतान किये गये मुआवज़े के बीच का अन्तर है, उस का 10 प्रति शत बीमा धारकों को वापस किया जायेगा, और शेष राशि जो कि वृद्धि राशि के 90 प्रति शत के बराबर है वह शेयर धारकों के हिस्से में जायेगी क्योंकि उन्हों ने (निवेष करके) अपने हुक़ूक़ को बीमा के जोखिम में डाला है। (कंपनी का संविधान अनुच्छेद संख्या 43, तथा सहकारी बीमा कंपनियों पर नियन्त्रण प्रणाली के कार्यकारी नियमों के अनुच्छेद संख्या : 70). इस का मतलब यह हुआ कि इस कंपनी में बीमा की प्रणाली एक संविदात्मक प्रतिबद्धता पर आधारित है, जिस के तहत मुआवज़े देने की प्रतिबद्धता के बदले में क़िस्तों के हक़दार शेयर धारक होते हैं, और यही वाणिज्यिक बीमा की वास्तविकता है। तथा अधिशेष का एक हिस्सा बीमा धारकों पर लौटाना मात्र इस अनुबंध को शरई रंग देने (धर्म संगत साबित करने) का एक प्रयास है। और सहकारी बीमा में अनिवार्य यह है कि सम्पूर्ण अधिशेष बीमा ग्राहकों के हिस्से में हो, अत: या तो उसे उन्हें वापस लौटा दिया जाये, या बीमा गतिविधियों के आकस्मिकता निधि में रखा जाये।
(ख) ऊपर वर्णित नियम को लागू करते हुए कंपनी ने वर्ष 2003 में बीमा के कारोबार से 178,914,000 (सत्तरह करोड़ नवासी लाख चौदह हज़ार) रियाल की राशि वित्तीय अधिशेष के रूप में प्राप्त किया, जिस में से 18,000,000 (एक करोड़ अस्सी लाख) रियाल अर्थात् अधिशेष राशि का 10 प्रति शत बीमा धारकों को वापस किया गया, और उस से आकस्मिकता को लेने के बाद अवशेष राशि एकत्रित अधिशेष के योग में शामिल कर दिया गया जिस से कंपनी का बीमा के कारोबार से एकत्रित अधिशेष का कुल योग 548,452,000 (चव्वन करोड़ चौरासी लाख बावन हज़ार) रियाल को पहुँच गया, और कंपनी के संविधान के अनुसार यह अधिशेष शेयर धारकों का हिस्सा माना जाता है।
(ग) यह कंपनी कुछ पुनर्बीमा कंपनियों के साथ पुनर्बीमा के अनुबंधों के द्वारा संबंधित और जुड़ी हुई है, जो आमतौर पर विदेशी कंपनियां हैं और व्यावसायिक बीमा की प्रणाली पर आधारित हैं। और यह बात ध्यान आकर्षित करने वाली है कि पुनर्बीमा की राशि, बीमा की सम्पूर्ण क़िस्तों के आधा से भी अधिक राशि का प्रतिनिधित्व करती है।
उपर्युक्त तत्वों से स्पष्ट होता है कि बीमा की सम्पूर्ण क़िस्तों के आधा से भी अधिक राशि देश (सऊदी अरब) से बाहर भेजी जाती है, और वाणिज्यिक बीमा के अनुबंध का यही स्वभाव है।
दूसरा : कुछ निषिद्ध (हराम) गतिविधियों में कंपनी का निवेश है :
कंपनी ने बीमा धारकों द्वारा भुगतान किये गए पैसे को हराम (निषिद्ध) स्टाक और बाण्ड में निवेश किया है, और वित्तीय वर्ष 2003 में इन स्टाक और बाण्ड की क़ीमत 430,525,000 (तैंतालीस करोड़ पाँच लाख पचीस हज़ार) रियाल पहुंच गई, जो कि बीमा के कारोबार से प्राप्त कुल राशि के 24 प्रति शत के बराबर है।
इसी तरह इस कंपनी ने शेयर धारकों के पैसे को भी हराम (निषिद्ध) स्टाक और बाण्ड में निवेश किया है, जिस की क़ीमत वित्तीय वर्ष 2003 में 34,981,000 (तीन करोड़ उंचास लाख इक्यासी हज़ार) रियाल को पहुँच गई थी। और यह शेयर धारकों के कुल अधिकारों के लगभग 8 प्रति शत के बराबर है।
इस के अतिरिक्त, यह कंपनी एक वाणिज्यिक बीमा कंपनी के 50 प्रति शत का मालिक है।
1- शरई मापदण्डों के अनुरूप और बीमा के लक्ष्यों को प्राप्त करने वाले एक सहकारी बीमा योजना के लिए सुझाव :
(क) सहाकरी बीमा फा प्रशासन एक शेयर धारक कंपनी करे, जिस में शेयर धारकों का एक वित्तीय केन्द्र हो जो वास्तविक रूप से बीमा अभियान के वित्तीय केन्द्र से अलग हो।
(ख) शेयर धारक कंपनी को यह अधिकार है कि बीमा कि क़िस्तों के योग से सभी प्रशासनिक और संचालन व्यय (लागत) को घटा दे, तथा बीमा अभियान को चलाने के बदले में, भाड़े के एक एजेंट के रूप में, अपनी मज़दूरी का भुगतान करे, इसी तरह उस के लिए इस बात की भी अनुमति है कि वह बीमा धारकों के पैसे को वैध निवेश की चीज़ों में निवेश करे, और इस के कारण वह एक निवेश भागीदार के रूप में उस निवेश से प्राप्त होने वाले लाभ से प्रतिश पाने का भी हक़दार है।
(ग) कंपनी के लिए अनिवार्य है कि वह निषिद्ध निवेश जैसे कि स्टॉक और बाण्ड इत्यादि में प्रवेश करने से दूर रहे, चाहे यह शेयर धारकों से संबंधित निवेश में हो या बीमा की गतिविधियों से सम्बंधित निवेश में हो।
(घ) कंपनी की बीमा धारकों को मुआवज़ा देने की प्रतिबद्धता के दो प्रकार हैं : एक जाइज़ और दूसरा निषिद्ध। जाइज़ प्रकार का मतलब यह है कि कंपनी ईमानदारी के साथ और पेशेवर तरीक़े से बीमा की गतिविधियों को चलाने के लिए प्रतिबद्ध हो, और जब भी वह इस में कोताही करे गी तो उसे कोताही का परिणाम भुगतना होगा और उस का मुआवज़ा भुगतान करना होगा। और निषिद्ध प्रकार यह है कि वह कंपनी सामान्य रूप से मुआवज़े का भुगतान करने के लिए प्रतिबद्ध हो चाहे वह नुकसान और छति कपंनी की ओर से हो या उसके अलावा की तरफ से, और यह सहकारी बीमा के मूल सिद्धान्तों के विरूद्ध है। बल्कि इस के बजाय कंपनी को बीमा की क़िस्तों से बढ़ी हुई राशि से आकस्मिकता निधि स्थापित करना चाहिए, और इस आकस्मिकता निधि को शेयर धारकों के अधिकारों की सूची में शामिल नहीं करना चाहिए बल्कि इसे बीमा की गतिविधियों के लिए विशिष्ट रखना चाहिए।
(ङ) कंपनी जोखिम के विखण्डन के लिए पुनर्बीमा के अनुबंधो से जुड़ सकती है, बशर्ते कि ये अनुबंध सहकारी बीमा के प्रकार से हो।
अन्त में, हम सर्वशक्तिमान और महान अल्लाह से दुआ करते हैं कि वह कंपनी के प्रबंधकों को हर भलाई की तौफीक़ (सक्षमता) प्रदान करे, तथा हमारा, उनका और समस्त मुसलमानों का उस चीज़ की तरफ मार्गदर्शन करे जिस से वह प्यार करता और प्रसन्न होता है, तथा अल्लाह तआला हमारे सन्देष्टा मुहम्मद पर दया और शान्ति अवतरित करे।
हस्ताक्षर कर्ता :
1- डॉ. मोहम्मद बिन सऊद अल उसैमी, अल बिलाद बैंक के शरीया परिषद के जनरल निदेशक।
2- डॉ. यूसुफ बिन अब्दुल्लाह अश्शबीली, इमाम मोहम्मद बिन सऊद इस्लामी विश्वविद्यालय के उच्चतर न्यायिक संस्थान (अल माहदुल आ़ली लिल क़ज़ा) में फैकल्टी के सदस्य।
3- प्रो. डॉ. सुलैमान बिन फहद अल ईसा, इमाम मोहम्मद बिन सऊद इस्लामी विश्वविद्यालय के स्नातक अध्ययन के प्रोफेसर।
4- प्रो. डॉ. सालेह बिन मोहम्मद अल सत्तान, क़सीम विश्वविद्यालय में फिक़्ह के प्रोफेसर।
5- डॉ. अब्दुल अज़ीज़ बिन फौज़ान अल फौज़ान, इमाम मोहम्मद बिन सऊद इस्लामी विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर।
6- डॉ. अब्दुल्लाह बिन मूसा अल अम्मार, इमाम मोहम्मद बिन सऊद इस्लामी विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर.
इस्लाम प्रश्न और उत्तर
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